कविता

शहादत हकीकत की मत भूल जाएँ

 

हकीकत को फिर ले गए कत्लगाह में,हजारों इकठ्ठे हुए लोग राह में
चले साथ उसके सभी कत्लगाह को, हुयी सख्त तकलीफ शाही सिपाह को
किया कत्लगाह पर सिपाहियों ने डेरा, हुआ सबकी आँखों के आगे अँधेरा
जो जल्लाद ने तेग अपनी उठाई, हकीकत ने खुद अपनी गर्दन झुकाई
फिर एक वार जालिम ने ऐसा लगाया, हकीकत के सर को जुदा कर गिराया
उठा शोर इस कदर आहो फुंगा का, के सदमे से फटा पर्दा आसमां का
मची सख्त लाहौर में फिर दुहाई, हकीकत की जय हिन्दुओं ने बुलाई
बड़े प्रेम और श्रद्दा से उसको उठाया, बड़ी शान से दाह उसका कराया
तो श्रद्दा से उसकी समाधी बनायी, वहां हर वर्ष उसकी बरसी मनाई
वहां मेला हर साल लगता रहा है, दिया उस समाधि में जलता रहा है
मगर मुल्क तकसीम जब से हुआ है, वहां पर बुरा हाल तबसे हुआ है
वहां राज यवनों का फिर आ गया है, अँधेरा नए सर से फिर छा गया है
अगर हिन्दुओं में है कुछ जान बाकी, शहीदों बुजुर्गों की पहचान बाकी
शहादत हकीकत की मत भूल जाएँ, श्रद्दा से फुल उस पर अब भी चढ़ाएं
कोई यादगार उसकी यहाँ पर बनायें, वहां मेला हर साल फिर से लगायें

(डा. गोकुल चन्द नारंग)