हास्य व्यंग्य

आहत बापू के बोल!

आज हमारे बीच गाँधी होते तो रंज और मलाल से अपना सिर पकड़ लेते। आज न तो उनके अनशन की पूछ होती और न ही सत्याग्रह चल पाता। घोटालों की बाढ़ में उनके कुछ भी समझ में नहीं आता कि वे क्या करें या क्या न करें? ऐसी सरकार जिसमें बेमियादी अनशन करने वालों को खुद ही अनशन तोड़ना पडे़ तो गाँधी बेचारे आखिर करते भी क्या? गूंगी और बहरी बनी सरकार गाँधी की गलफांस बन जाती। इस नक्कारखाने में लंगोटी वाले की सुनता भी कौन? मैं खुद आहत हूँ पशोपेश में हूँ।

गाँधी चौक पार्क में जाकर गाँधी की प्रतिमा के सामने खड़ा हो गया। अपलक उन्हें देखता रहा, आवाज आई – ‘‘क्यों बेटा क्या बात है? मुझे जिस काल में कोई देखना नहीं चाहता, ऐसे में तुम अपना आहत हृदय लेकर क्यों वक्त बरबाद कर रहे हो?’’

‘‘बाबा, देश का क्या होगा?”

मैनें प्रश्न किया तो स्मित मुस्कान के साथ आवाज आई -‘‘किसका देश और कौनसा देश?’’

‘‘बापू आपका भारतवर्ष।’’

मेरे यह कहने पर प्रतिमा ने उत्तर दिया -‘‘यह तुम्हारा वहम है बेटा। भारत नहीं यह अंग्रेजों का इण्डिया बन गया है फिर से। भारत होता तो उसके सिद्धान्त और संस्कृति का चलन होता। बेआ भारत बहुत पीछे छूट गया है। देशभक्ति का जज्बा आज है किसमें? सब इसे बेतहाशा गति से लूट रहे हैं। अब यह सोने की चिड़िया नहीं रहा है। दूध-दही की नदियाँ नहीं बहती अब। चाय को राष्ट्रीय पेय बनाने की बहस चल रही है। बूचड़खानों में रोज हजारों गायों की हत्यायें हो रही है। इसलिये दुखी होने से क्या फायदा। जाओ तुम भी इसी भीड़ में शामिल हो जाओ।’’

मैं बोला -‘‘नही बापू, इस देश को रास्ता दिखाओं वरना यह तो आत्मघात की ओर बढ़ रहा है।’’

‘‘बेटा, मैने अन्ना नाम का एक बूढ़ा भेजा था, लोग उसे बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं और उसकी किसने सुनी। जंतर-मंतर से वह भी चला गया। राजघाट आया तब मैंने उससे कहा था -‘‘अन्ना, मत सिरफोड़ी करो। जाओ गाँवों में गरीबों की सेवा करो। लेकिन टीम के बहाने आये लोग ही सत्ता सुख के सपने देखने लगे। उसकी दशा आज मेरी जैसी ही है। आहत होकर पड़ा है। निर्णय लेने की क्षमता इस मारामारी और आपाधपी के युग में खत्म हो गई है।’’

‘‘तो बापू, मैं क्या करूं? मैं बहुत दुखी हूँ। यहाँ का एक साधारण आम गरीब हूँ। पेट की आग शांत करने का मार्ग सुझाओ।’’

मैने पूछा तो बापू बोले-‘‘गरीब हो, यह मेरा और तुम्हारा दुर्भाग्य है। गरीबी हटाओ के कार्यक्रमों में तुमने देख ही लिया। नेता सब हड़प जाते हैं। गरीब रोते हैं। जिस देश का नेता भ्रष्ट हो, उसे भला कौन संभाल सकता है। जाओ अपने घर। मैं क्या बताऊँ पेट की आग बुझाने का मार्ग!’’

मैने देखा बापू की प्रतिमा से दो बूंद अश्रु ढुलक पडे़। बोले -‘‘बेटा मुझे जगह-जगह पूरे देश में खड़ा कर दिया गया हैं मेरे आदर्श आज धूल चाट रहे हैं। जाओ, अपने घर जाओ, हाँ आत्महत्या मत करना, इतनी सी मेरी तुमसे प्रार्थना है।’’

गाँधी इसके बाद मौन हो गये। मैं बहुत देर तक उन्हें देखता रहा, लेकिन वे बोले कुछ नहीं।

पूरन सरमा

प्रख्यात व्यंगकार 124/61-62, अग्रवाल फार्म, मानसरोवर, जयपुर-302 020, मोबाइल-9828024500