लघुकथा

~~~काँटो भरी राह ~~~

टिहरी में आये जलजले में सब कुछ तबाह हो गया था । कौशल का मनोबल फिर भी ना टुटा था । रह-रह उसके पिता की बात उसके दिमाक में गूंजती थी कि विद्यादान सबसे बड़ा दान है ! और इस दान को प्राप्त करके ही सब आगे बढ़ेंगे। दान देने बाले को भी अभूतपूर्व संतोष का धन प्राप्त होता है ।इस दान में वह सुख है जो कभी कहीं भी नहीं मिल सकता ।
बस फिर क्या था उसने अपने गाँव के सारे बच्चों को इकठ्ठा किया और लग गया विद्या का दान देने एक टूटे फूटे खंडहर में ।
खंडहर भले ही खंडहर ही था ,पर बच्चों के मष्तिष्क खण्डहर होने से मुक्त हो गये थे | कौशल अपनी मेहनत को अँकुरित, पल्लवित , पुष्पित देख फूले न समा रहा था ।
आज कई साल बाद खँडहर को पिता के नाम से ज्ञान के मंदिर रूप में स्थापित देख कौशल के आँखों से आँसू श्रधान्जली के रूप में लुढ़क गए । पिता को आभार प्रकट करता हुआ बोला -“ये सब आपकी शिक्षा का ही प्रताप है ‘पिता जी’ जो मैं काँटो भरी राह में फूल उगा पाया । ” Savita Mishra

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|