कविता

एक अकेला आदमी

घुप्प अकेले अंधेरे कमरे मेँ
वीरानगी छा जाती है
जब कोई हो अकेला
नितांत अकेला . . .

यह दुनिया,ये रिश्ते नाते
सब बेमानी लगते हैँ
जब इंसान होता है अकेला . . .

खुद से बातेँ करते करते
टूट जाता है एक दिन
ठुँठ पेड़ के
टुटे शाख के मानिंद
अपने इर्द गिर्द
बुन लेता है
अपनी ही यादोँ के जाले
जिसमेँ फँस कर वह
छटपटाता है एक दिन
आखिर
कहे भी तो किससे
कि दम घुटता है मेरा . . .

सिगरेट के धुओँ मेँ
तब्दील होती जाती है
उसकी उम्मीदेँ
उसने आस छोड़ दी है
किसी के साथ की
जब वह किसी से
जुदा होता है . . .

सीमा संगसार

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- sangsar.seema777@gmail.com आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

One thought on “एक अकेला आदमी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सीमा जी , कविता बहुत अच्छी लगी , निराशा में इंसान ऐसा ही सोचने लगता है.

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