कहानी

तपस्विनी

समाचार-पत्र का पृष्ठ खोलते ही उसमें छपे चित्र पर जैसे ही मेरी दृष्टि पड़ी तो नीचे लिखी पंक्तियों को एक ही सांस में पढ़ गयी |जिसे पढकर तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा | घर में सभी को ये समाचार पढकर सुनाया कि शुभम का एच० सी० एस० में चयन हो गया है | यह बताते-बताते मेरी आँखों में खुशी के आंसू छलक पड़े | घर में सभी के चेहरों से भी खुशिया |झलक रही थी | शुभम मेरी बचपन की सहेली नम्रता का बेटा है | जैसे ही मैंने बधाई देने को फोन उठाया तो आदित्य ने रोक दिया और बोले कि – “इतनी बड़ी खुशी फोन पर नहीं, शाम को उनके घर जाकर ही देंगे | मैं आफिस से जल्दी आ जाऊँगा |” कहकर आदित्य आफिस जाने के लिए तैयार होने लगे |

मैं भी जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाने लगी | काम करते-करते नम्रता का तेईस-चौबीस साल पहले का चेहरा आँखों के आगे घूम गया | इन तेईस सालों में उसने क्या कुछ नहीं सहा, कितने कष्ट सहे ? शुभम को इस उंचाईयों तक पहुँचने में अपना सारा सुख सारी खुशियाँ, सब भुला दी थी | जब भी मिलती बस एक ही विषय पर बात होती कि किसी तरह शुभम पढ़-लिखकर कुछ बन जाए तो मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझूंगी और अपने सारे दुःख भूल जाउंगी | आज भगवान ने उसकी सुन ली थी | उसे उसके त्याग और तपस्या का फल मिल गया था | शुभम ने भी अपनी मां का मन रख लिया था |

आज भी वह दिन भुलाए नहीं भूलता जब नम्रता की शादी तय हुई थी | जैसा कि उसने मुझे बताया था, अभी शादी नहीं करना चाहती थी वह, पर घरवालों ने उसका रिश्ता पक्का कर दिया था | घर में सभी बहुत खुश थे | आठ बहन- भाईयों में सबसे छोटी थी वह | सभी की शादियाँ हो चुकी थी | भाईयों ने अपनी अलग-अलग गृहस्थी बसा ली थी | बहनें भी अपनी-अपनी ससुराल में खुश थी | नम्रता ही थी जो अपने माता-पिता के साथ थी | वे भी उसकी शादी करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे पर, कहीं कोई अच्छा रिश्ता मिल ही नहीं रहा था | कहीं लेन-देन पर बात रुक जाती तो कहीं वर अच्छा नहीं मिलता | इसी उसकी बड़ी दीदी ने अपनी मौसी सास का लडका जो उनका देवर भी लगता था, उससे विवाह करने का प्रस्ताव अपनी मां के सामने रखा |

रात में सबके सो जाने के बाद दीदी और माँ बतियाने लगीं | दीदी ने बताया कि समीर नम्रता के लिए ठीक रहेगा | अच्छा कमाता-खाता है और देखने में भी ठीक लगता है | मौसी जी भी नहीं हैं | घर में भाई-भाभी और एक बहन है | नम्रता वहाँ बहुत खुश रहेगी | जब उसने अपना नाम सुना तो उसके कान खड़े हो गये | माँ ने कहा, “सुना है समीर तो बहुत शराब पीता है और उसका अपनी भाभी की बहन से भी कुछ चल रहा है|” मां की आवाज में कुछ चिन्ता का समावेश था |

दीदी ने इनकार करते हुए कहा- “जब से मौसा जी को दिल का दौरा पड़ा है तब से उसने पीना छोड़ दिया है और उस लडकी का विवाह भी कहीं हो गया है |” तसल्ली देते हुए दीदी ने कहा |

मां ने डरते-डरते फिर पूछा, “कहीं उसने फिर पीनी शुरू कर दी, तो तुम्हारी छोटी बहन की जिन्दगी ही खराब हो जायगी |” थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए दीदी ने कहा, “ओह माँ, तुम भी कैसी बातें करती हो | थोड़ा-बहुत तो आजकल सभी पीते ही हैं | वो तो मैं आप सबकी चिंता दूर करना चाहती थी | कब तक अपने घर में बिठाकर रखोगी ? आगे आपकी इच्छा |” कहकर दीदी ने अपना मुंह चादर से धनका और सो गयी |

मां ने गहरी सांस लेते हुए बस इतना ही कहा, “ठीक है कल तुम्हारे पिताजी से बात करूंगी “ कहकर मां भी निश्चिन्त होकर सो गयी | पर, उसे रात भर नींद नहीं आई | उसका मन इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहा था | यही दीदी थी जब भी घर आती तो समीर के शराब और ऐय्याशी के किस्से सुनाते नहीं थकती थी, और आज कह रही थी समीर सुधर गया |

पता नहीं माँ-पिताजी ने किस दबाब में आकर इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी | देखने-दिखाने का तो कोई सवाल ही नहीं था, सीधे सगाई की रस्म के लिए निमन्त्रण दे दिया |

कितना रोई थी वह कि उसे यह रिश्ता नहीं करना | यदि वह बोझ लगती है तो कुछ न कुछ काम कर लेगी पर, माँ-पिताजी ने तो वैसे ही कसम खा ली थी, उन्हें तो लग रहा था जैसे इस रिश्ते के सिवाय तो कोई और अच्छा रिश्ता मिल ही नहीं सकता |दीदी ने माँ-पिताजी के स्वास्थ्य का हवाला देते हुए तरह तरह की दलीलें देकर उसे चुप करा दिया | वैसे भी इस समाज में लडकियों की सुनता कौन है ? आज उसे स्वयं पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों नहीं वह आगे पढ़ी | माँ की बीमारी के कारण दसवीं से आगे की पढाई करने स्कूल नहींजा सकी | दिन-रात की सेवा से माँ को तो बचा लिया, पर उसका अपना जीवन दांव पर लग चुका था | सगाई के एक सप्ताह बाद ही शादी की तारीख पक्की कर दी गयी |

रिश्तेदार, सगे-सम्बन्धी, अडौसी-पड़ोसी उसके भाग्य को सराहने लगे कि घर बैठे इतना अच्छा रिश्ता मिल गया | आखिर विवाह की वह घड़ी भी आ ही गयी | शादी के दिन को मैं भी आज तक भुला नहीं पाई |जब जयमाल का समय आया तो दूल्हे राजा को उसके चार-पांच दोस्तों ने पकडकर जयमाला डलवाई, क्योंकि उसने इतनी शराब पी रखी थी कि वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था | पर घर के किसी सदस्यों का इस तरफ ध्यान ही नहीं गया या जानबुझकर दिया ही नहीं गया | उस समय इतना गुस्सा आया कि उसने घर जाकर गले से जयमाल ही उतारकर फेंक दी और शादी करने से साफ़ इनकार कर दिया | पर माँ और पिताजी अपनी इज्जत का वास्ता देने लग गये | भाई बोले कि हम समाज में क्या मुंह दिखाएँगे | पिताजी ने तो अपनी पगड़ी ही उतारकर उसके पैरों पर रख दी और हाथ जोडकर भिखारियों की तरह इज्जत की भीख मांगने लगे | अपनी खुशियों का गला घोंटकर वह इस आग में कूद पड़ी | किसी तरह फेरे पूरे हुए और विदा होकर “पराये घर” को “अपना घर” बनाने चल दी | बचपन से ही माँ कहती “कुछ काम सीख ले पराये घर जाना है |”और जब अपनी मर्जी से करती तो कहती “ये सब अपने घर जाकर करना, वहाँ कोई रोक-टोक नहीं होगी |” वह नहीं समझ सकी कि अपना घर कौन सा है और पराया घर कौन सा ?

ससुराल कहे जानेवाले घर में देखा कि शादी-विवाह जैसा कोई माहौल नहीं था, बस शगुन के रस्मों की खानापूरी हुई | मेहमानों के नाम पर आठ-दस रिश्तेदार अवश्य थे | भीतर बैठी हुई औरतों में खुसुर-फुसुर चल रही थी | हाय, इतनी सीधी-सादी सी लडकी और ……| तभी किसी के डांटने की आवाज आई | कुछ देर बाद पता चला कि नन्द और भाभी में कहा-सुनी हो रही थी | भाभी इसलिए खुश थी कि निश्चित समय पर निर्विघ्न विवाह सम्पन्न हो गया था | दुल्हे की माँ जीवित नहीं थी इसलिए भी दुल्हे की भाभी ही प्रधान थी | वही सारे काम करा रही थी | नम्रता को लग रहा था कि उससे कुछ छिपाया जा रहा है | अबतक उसने अपनी किस्मत से समझौता करके परिस्थितियों के सामने घुटने टेक दिए थे |

कमरे में बिछे पलंग पर गठरी बनी बैठी वह अपने जीवन के कर्णधार,पति परमेश्वर का इन्तजार कर ही रही थी कि अचानक ध्क्के से दरवाजा खुला और लडखडाते हुए कदम उसकी ओर बढ़े | उसका कोमल तन सूखे पत्ते की तरह काँप उठा ….. उसने तो सुन रखा था कि समीर ने शराब का सेवन छोड़ चुका है….. फिर…. कि….तभी आवेश में उसकी साडी का पल्लू खींचते हुए उसके सामने ही गिर पड़ा | वह थर-थर काँप उठी | पल्लू सम्भालते हुए वह बाहर की ओर मदद के लिए भागी | घर में बस दो-चार मेहमान बचे थे उसी क्षण वे सब वहाँ एकत्रित हो गये | उसकी ननद अपनी बड़ी भाभी पर चीख पड़ी , “मैं कहती थी न,कि किसी मासूम लडकी का जीवन बर्बाद मत करो, आखिर हुआ वही जिसका डर था |” भाभी ने ननद के मुंह पर अपनी हथेली रखकर बंद कर दिया जिससे वह आगे कुछ नहीं बोल सकी |

नम्रता को एक के बाद एक झटके लग रहे थे | पल भर में सारी सच्चाई सामने आ गयी | सहमी-सहमी वह अपनी ननद के कंधे पर सर रखकर सिसक पड़ी | उस पराये घर में एक वही अपनी सी व समझदार लगी थी | सारी रात आँखों में ही कट गयी | धीरे-धीरे बातें करने की आवाजें आती रहीं |

रिवाज के अनुसार उसका भाई मायके ले जाने के लिए आ गया | विदा करते समय घर की प्रधान भाभी ने हाथ जोडकर मिन्नतें की, “कि वह मायके में, यहाँ हुई बातों का जिक्र न करे | समीर के विषय में किसी से कुछ न कहे | कुछ दिन बाद सब स्वत: ठीक हो जायगा | इस घर की इज्जत अब तुहारे हाथ में है |

इधर नम्रता का दिल घबरा रहा था | उसका मन कर रहा था कि जल्दी से जल्दी माँ के घर पहुंच जाए | सभी देवी-देवताओं को मनाती हुई वह दोपहर बाद मायके पहुच गई |माँ को सामने देखते ही गले लगकर फूट – फूटकर रो पड़ी | वह डरी और सहमी हुई सी थी | एक ही रात में उसके चेहरे की लाली खतम हो चुकी थी उसने स्वयं को एक कमरे में बंद कर लिया और बहुत देर तक जी भरकर रोती रही | बाहर सभी हैरान औ’ परेशान थे | किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है ? माँ ने अपनी कसम देते हुए दरवाजा खुलवाया | माँ ने जैसे ही सर पर हाथ रखा तो फिर बिलख पड़ी, और रोते हुए बोल पड़ी- “माँ मैं उस घर में नहीं जऊँगी |आपके पास रहकर ही आपकी सेवा करूंगी और कोई न कोई काम कर लूंगी | ये सभी जानते थे कि उसके हाथ में काम का बहुत हुनर है | सिलाई-कढ़ाई से लेकर बुनाई कला में वह अत्यंत पारंगत थी | लेकिन भाग्य की विडम्बना तो देखिये, माँ ने उसकी मनोव्यथा को न समझते हुए उसे अपने संस्कारों का पाठ पढ़ा दिया | अपने आंचल में छिपाने के बजाय अपनी प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा का ख्याल रखने को कहा | वे बोलीं – “बेटी, विवाह के बाद बेटी का घर ससुराल ही होता है | अब तो उस घर से तुम अर्थी पर बैठकर ही निकलना |”

“तुम सच ही कह रही हो माँ, कुछ ही दिनों में अर्थी पर ही निकलूंगी मै |” दर्दभरी आवाज में नम्रता बोली | पर, घर के किसी ही सदस्य का दिल नहीं पसीजा | कोई भी उसका दुःख नहीं समझ पा रहा था, ना ही उसका दुःख बाँटनेवाला कोई था | मध्यमवर्गी परिवारों की यही दुखद स्थिति होती है | बेटियों को ही बलि का बकरा बनना पड़ता है | उसकी एक न चली | अपनी सीने पर पत्थर रखकर उसने जीवन नौका को डूबने के लिए छोड़ दिया | अपने मन को समझाती हुई चल पड़ी उस घर की ओर | रास्ते भर यही सोचती रही कि अब मां-बाप भी क्या कर सकते हैं | वो समाज के तानों से डरते हैं | अपने भाग्य से उसे स्वयं लड़ना होगा | किसी भी तरह समीर को शराब से दूर रखना होगा | इसी संकल्प के साथ उसने फिर एक बार उस घर की ओर रुख किया |

कहते हैं न कि शराब पीनेवाला व्यक्ति जल्दी से शराब नहीं छोड़ता, वही हाल समीर का था | ज्यादा पीने के बाद वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता और उसके साथ पशुवत व्यवहार करके मार-पिटाई पर उतर आता था | एक बार तो इतनी मार-पिटाई की, कि वह बेहोश हो गई | समय अपनी गति से चल रहा था | जीवन की नैया डगमगाती हुई हिचकोले खाती हुई चल रही थी | कभी-कभी डूबने का भी खतरा बढ़ जाता | शादी के चार महीने बाद उसे आभास हुआ कि वह माँ बननेवाली है | माँ बनने पर खुश होने के बजाए उसे दुःख ही हुआ कि वह अपनी सन्तान को क्या भविष्य देगी | जिस पुरुष से नाता जोड़ने में उसे कष्ट महसूस हो रहा था वह अब इसकी सन्तान को अपनी कोख में पालेगी | मायके में उसका आना-जाना कम ही था | उसे पता था कि उसका जीवन अब यहीं कटना है | कभी-कभी स्थिति इतनी भयावह हो जाती कि वह अपनी जीवन-लीला ही समाप्त करने की सोचती, पर अब उसके साथ एक जान और जुड़ चुकी थी, जिसकी रक्षा करना उसका कर्तव्य था | दिन बीतते जा रहे थे | समीर की स्थिति जस की तस थी |

दिखावे के लिए जेठानी जी ने गोद भराई का चक्रव्यूह रचा | इस बहाने उसे मायके से सामान ऐंठने का अवसर जो मिल रहा था | फिर वाह-वाही भी लूटनी थी कि देखो सास नहीं है फिर भी सासवाले सारे काम कर रही है | इस अवसर पर अपने मायके से अपनी बहन सोनियां को भी बुला लिया | ये कहकर कि नम्रता को आराम की जरूरत है | सोनियां काम में हाथ बंटवा देगी | घर में कुछ मेहमान इकट्ठे हुए | इस खुशी के नाम पर समीर ने खूब शराब पी | उसे गिरते देख सोनियां सहारा देकर उसके कमरे तक ले गयी | घर में उत्सव सा माहौल था,पर नम्रता का मन तो दुखी था | जब काफी देर तक सोनिया आंगन में बाहर नहीं आई तो वह स्वयं उठकर समीर के कमरे की ओर चल दी | वहाँ पहुंचकर कथित साली और समीर को आपत्तिजनक अवस्था में देखकर उसे चक्कर सा आ गया और वह उलटे पाँव ही आंगन में चारपाई पर गिरते ही बेहोश हो गयी | उसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया |

मायके से आये भाई व भाभी ने उसकी ऐसी स्थिति देखी तो वे उसे घर ले आये | समय आने पर मायके में ही उसने एक नन्हें-मुन्ने को जन्म दिया | पुत्र जन्म की खबर सुनकर जेठ – जेठानी, ननद और समीर बच्चे को देखने आये | दस दिन बाद ले जाना निश्चित कर चले गये | नम्रता को लगा कि बेटा होने के बाद शायद समीर के व्यवहार में कुछ बदलाव आ जाए | मां को वह कुछ भी बताकर अब दुखी करना नहीं चाहती थी |

मायके से विदा कराने उसके जेठ-जेठानी और ननद ही आये | मां ने विदाई पर खूब सारा सामान, नगदी व मिठाईयां दी | जेठानी ने ससुराल जाकर उसकी पहली बार इतनी आवभगत की | इस सेवा के पीछे उसका क्या मकसद था वह नहीं जान पाई | उन्होंने अपनी बहन को भी बुला रखा था |समीर और सोनिया शाम को अक्सर बाहर एक साथ घूमने चले जाते | पता नहीं उनकी रास-लीला कब से चल रही थी | जेठानी भी सब कुछ जानती थी | एक दिन मौक़ा देखकर अनीता ने समीर से इस विषय में बात की तो समीर का जबाब सुनकर सबकुछ बिखरता सा लगा | नवजात शिशु को आंचल में समेटे एकबार फिर वह जीवन के दो-राहे पर खडी हो गयी | जब समीर ने बताया कि वह तो पहले से ही सोनिया को चाहता था, पर उसकी शादी कहीं और हो गयी थी | अब उसने तलाक ले लिया है और वह उसके साथ ही रहेगी | तुम्हें सब स्वीकार करना पड़ेगा | जब अनीता ने इसका विरोध किया तो मार-पीट पर उतर आया | समीर को अपने बच्चे पर भी तरस नहीं आया | उस दिन वह बहुत रोई |

उस रात पानी पीने के लिए उठी तो रसोई घर की ओर जाते हुए दूसरे कमरे के आगे से गुजरी तो उसने सुना – अंदर से धीरे-धीरे बातें करने की आवाज आ रही थी | दरवाजे के पास खडी होकर सुनने और समझने का प्रयास किया | जो कुछ सुना तो लगा कि किसी ने उसके कानों में पिघला शीशा डाल दिया हो | ज्यादा देर वहाँ खडी न रह सकी | पानी पिए बिना ही हांफती हुई अपने विस्तर पर आकर बैठ गई | इस बात की तो सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि ये लोग इतना घिनौना षड्यंत्र भी रच सकते हैं | जनवरी के महीने में भी उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलक पड़ी | बेटे को सीने से लगाकर जोर-जोर से रो पड़ी | पूरी रात उसने जागकर काट दी | उसे स्वयं से ज्यादा चिंता बच्चे की सताने लगी | कितने निर्दयी हैं ये लोग | अब तो उसे हर कोई अपना दुश्मन नजर आने लगा | अब तो स्थिति यहाँ तक पहुंच चुकी थी कि उसे रसोईघर जाने में भी डर लग रहा था | आनेवाला हर पल उसे अपनी मौत का पल लग रहा था |

दूसरी तरफ घर के सभी सदस्यों का व्यवहार भी उसके प्रति अच्छा हो रहा था | सभी प्रेमपूर्वक बातें कर रहे थे | अगले दिन सोनिया चहकती हुई आई और शब्दों में मिठास घोलते हुए बोली- “दीदी, लाओ चिंकू को थोड़ी देर मैं खिलाती हूँ | दीदी, आपके हाथों की अदरखवाली चाय पीये बहुत दिन हो गये | आज आप ही चाय बनाकर पिला दें तो बहुत मेहरबानी होगी |” कहते हुए चिंकू को अपनी गोद में ले लिया | नम्रता को लगा, जैसे ये चाय बनाने का नहीं आग में कूदने का आदेश मिला हो | उसने रसोई घर में जाकर जान-बूझकर दूध नाली में गिरा दिया और घर में दूध न होने का बहाना किया | समीर बाजार से दूध लाने के लिए जाने लगा तो नम्रता ने सोनिया को कुछ पैसे दिए और चिंकू का छोटा-मोटा सामान लाने के लिए कहा | रसोईघर में कटी हुई गैस पाईप वह देख चुकी थी |

सोनिया व समीर ये कहकर निकल गये कि जबतक तुम गैस पर पानी चढा दो | सोची समझी साजिश के कारण ही जेठ-जेठानी सुबह-सुबह ही किसी रिश्तेदार के घर चले गये थे | उसने जल्दी-जल्दी चिंकू को कपड़े में लपेटा और किराये भर के पैसे रुमाल में बांधे | जिन कपड़ों में थी उसी में घर से निकल भागी | उसने बस स्टेंड जाने के लिए रिक्शा ली | वह जल्दी से जल्दी बस में बैठ जाना चाहती थी | समीर और सोनिया इस उम्मीद से बाजार में देर लगा रहे थे कि जबतक आयेंगे तबतक सारा खेल ही खतम हो चुका होगा | किसी को उन पर शक भी नहीं होगा |
वह बस में बैठकर अपने मायके के लिए रवाना हो चुकी थी | भूखी-प्यासी, हाल-बेहाल सी मां के पास पहुंचते ही बेहोश हो गयी |

डाक्टर ने कहा कि उसे किसी बात का गहरा सदमा लगा है, कमजोरी भी बहुत है | दवाई देकर उसे आराम करने को कहा | आज उसकी इस हालत की जिम्मेदार मां स्वयं को मान रही थी | उन्हें बहुत पछतावा हो रहा था | रोती-बिलखती बेटी को गले लगाकर उसका साथ देनी की कसम खा ली | काफी सोच-समझकर बेटे को मां की गोद में डालकर स्वयं जे० बी० टी० करने लगी | आत्म विश्वास से भरी नम्रता ने अपने नये जीवन में एक दृढ़ संकल्प के साथ प्रवेश किया | नौकरी कर अपने बच्चे को पढाया | नाते-रिश्तेदार पहले ही नाता तोड़ चुके थे |

ससुराल के तरफ से पंचायत बिठाई गयी, माफी माँगी गयी पर नम्रता अब दुबारा गलती दोहराना नहीं चाहती थी | आज वह अपने पैरों पर खडी थी | भाईयों ने मां से नाराज होकर आना-जाना छोड़ दिया था बल्कि अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया था | नम्रता ने बेटे-बेटी दोनों का कर्तव्य निभाया तथा अपने माता-पिता की खूब सेवा की | हर्ट-अटेक से पिता की मृत्यु के पश्चात मां भी ज्यादा दिन जीवित नहीं रही | अब उसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं थी | शुभम (चिंकू) ने बारहवीं कक्षा पास कर ली थी |

रिश्तेदारों के व्यंग-बाणों का उसे पग-पग पर सामना करना पड़ता था | माता-पिता की मौत का जिम्मेदार भी भाईयों ने उसे ही ठहराया था | भाभी ने तो यहाँ तक कह दिया कि “उन्हें तो बेटी का गम हो गया अन्यथा अभी उम्र ही क्या थी ?” सब कुछ जानती हुई भी वह चुप ही रहती जबकि दो वक्त की रोटी भी इन लोगों ने नहीं दी थी | शुभम हर कक्षा में प्रथम आता रहा और बी० ए० करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया | उसका एक ही लक्ष्य था एच० सी० एस०पास करना, जो उसने करके दिखा दिया |

जब शाम के समय मैं और आदित्य उसके घर पहुंचे तो बधाई देनेवालों का तांता लगा हुआ था | उसके भाईयों को वहाँ देखकर मैं हैरान हो गयी| जो मुझसे नजरें नहीं मिला पा रहे थे | जिन्होंने उससे एक कमरे की छत, जो नम्रता के चाचा ने दी थी, वह भी छीन ली थी | आज वही उसके त्याग और तपस्या का बखान करते नहीं थक रहे थे | नम्रता ने अंदर से आते हुए जैसे ही हमें देखा तो वह दौडकर गले से लिपटकर फफक-फफककर रो पड़ी | मैं जानती थी यह उसके खुशी के आंसू थे | आज उसके दिल का दर्द सैलाब बनकर फूट पड़ा था | मैं उसे रोकना भी नहीं चाहती थी | पता नहीं हम अभी और कितनी देर तक गले रहते यदि शुभम ने आकर मेरे पाँव नहीं छुए होते | उसको आशीर्वाद देते हुए मेरा कलेजा भर गया | मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे , मन ही मन उसकी दीर्घायु की कामना करने लगी | शुभम की नम आँखों में बुलंदियां छूने की चमक बरकरार थी | भगवान से यही दुआ करती रही कि हे भगवान, ऐसी औलाद सबको दे | आदित्य की तरफ ध्यान गया तो उन्हें भी आँखों पर रुमाल रखे पाया…..|

ये जरूरी तो नहीं कि वन-कन्दराओं में जाकर तपस्या की जाय | गृहस्थी भी तो एक तपस्थली है, जिसमें रहकर नम्रता ने तप किया और तपस्विनी बनी |

— सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. surekhasharma56@gmail.com

One thought on “तपस्विनी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक और प्रेरक कहानी !

Comments are closed.