गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

नींद अपनी से दगा न कर
रातभर तू जगा न कर

वो बे-ईमान वाले हैं, हाँ
बार बार उनसे मिला न कर

जो दूर है निगाहों से तेरी
उन्हें दिल से जुदा न कर

फैसले ठन्डे दिमाग से ले
जल्दबाजी यूँ ही किया न कर

इक दिन तू पत्थर हो जायेगा
ऐसे अश्क़ अपने पिया न कर

‘विंकल’ हमराही बना किसी को
इस उम्र में तन्हा जिया न कर

गौरव कुमार ‘विंकल’

4 thoughts on “ग़ज़ल

  • गौरव कुमार 'विंकल'

    shukria vijay ji

  • गौरव कुमार 'विंकल'

    shukria ramesh ji

  • विजय कुमार सिंघल

    बेहतरीन ग़ज़ल !

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