कविता

कमीज का कालर

ह्म्म्म!!
कड़क झक्क सफ़ेद
टंच बुशर्ट !! फीलिंग गुड !!
चुटकी भर रिवाइव पावडर
कुछ बूँद टिनोपाल व नील की
डलवा दी थी न !

कल पहन कर जब निकला था
था प्रसन्नचित
था पहना तने चमकते कॉलर के साथ
धुली सफ़ेद कमीज !!

दिन पूरा गुजरा
गरम ईर्ष्या व जलन भरा दिन
दर्द से लिपटी धूल के साथ
आलोचनाओं की कीचड़ को सहते हुए
हाँ, कुछ खुशियों के परफ्यूम की बूंदे भी
गिरी थी शर्ट पर !!

तभी तो रात तक
सफ़ेद से मटमैली हो गयी बुशर्ट !!
फिर भी मध्यमवर्गीय आदतें
दो दिन तो पहननी थी बुशर्ट !

जबकि कॉलर पर
हो गयी थी जमा
हर तरह की गन्दगी
दिखने लगी थी बदरंग !

कोई नही!!
स्नान कर , महा मृत्युंजय पाठ के साथ
लगा कर डीयों व उड़ेल कर पावडर
जब फिर से पहनी वही कमीज
तो, कॉलर के अन्दर का एक और अस्तर
चढ़ा दिया उसपर !!

अब तो जंच रहा हूँ न!
आखिर जीने के लिए
दोहरी जिंदगी जीनी ही पड़ती है यार!

कॉलर पर कॉलर की तरह !!
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बिहार में एक कहावत है
“ऊपर से फिट-फाट, अन्दर से मोकामा घाट”

2 thoughts on “कमीज का कालर

  • विजय कुमार सिंघल

    हा… हा…हा… बढ़िया !

  • महातम मिश्र

    श्री मुकेश कुमार सिन्हा जी, मध्यम वर्गीय जीवन का जिवंत चित्रण आप की कालर ने किया, अच्छी रचना मान्यवर, सादर शुभकामना……

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