इतिहास

यौधेय गणराज्य : मुद्राशास्त्रीय अनुशीलन

प्राचीन भारतीय राज्यों में प्रमुखतः दो प्रकार की शासन प्रणाली प्रचलित थी _राजतंत्रात्मक एवं गणतंत्रात्मक.राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली में शासन का प्रमुख राजा होता था, जबकि गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली ‘ में संघ अथवा गण के प्रमुख व्यक्ति को शासक नियुक्त किया जाता था.लगभग ४०० ईसा पूर्व से लेकर ३०० ईसवी तक के दीर्घ समयांतराल में ऐसी गणतंत्रात्मक अथवा गणराज्य शासन व्यवस्था का अस्तित्व विद्यमान रहा है.पाणिनि ने ऐसे संघों का उल्लेख ‘अष्टाध्यायी ‘ नामक ग्रन्थ में किया है जिनमें यौधेय गणराज्य अपनी वीरता एवं स्वाभिमान के कारण प्रख्यात रहा है.’महाभारत’ में यौधेयों को युधिष्ठिर का वंशज बतलाया गया है.शक क्षत्रप रुद्रदामन के’जूनागढ़ अभिलेख’में यौधेयों का उल्लेख सबसे बड़े वीर योद्धा के रूप में हुआ है. समुद्रगुप्त की ‘प्रयाग प्रशस्ति ‘ में यौधयों का उल्लेख सम्राट को संतुष्ट करने वाले गणों के साथ हुआ है.

यौधेय गणराज्य की चांदी, तांबे और पोटीन धातु की मुद्राएँ पूर्वी पंजाब में सतलज और यमुना नदियों के मध्यवर्ती भूभाग से प्राप्त हुई हैं| इसी प्रकार १९५६ ईसवी में देहरादून जनपद में चकराता तहसील के अंतर्गत पंज्या नामक ग्राम से यौधेयों की १६४ मुद्राओं की एक निखात निधि प्राप्त हुई है जिससे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र पर उनका निर्विवाद रूप से अधिकार था.

यौधेयों की मुद्राओं को कालक्रमानुसार मुख्यतःतीन भागों में विभक्त किया जा सकता है _
१.वृषभ तथा गज प्रकार की मुद्रा
२.कार्तिकेय के साथ ब्राह्मणस्य देवस्य अंकित मुद्रा
३.कुषाण अनुकरण पर निर्मित मुद्रा

20150323095923 (1)प्रथम प्रकार की मुद्राएँ ताम्र निर्मित हैं जिनका निर्माण काल २०० ईसा पूर्व के लगभग माना जाता है| इस प्रकार की मुद्रा के अग्रभाग पर वृषभ की आकृति है और उसके सम्मुख स्तम्भ की आकृति है. साथ में ब्राह्मी लिपि में ’यौधेयानां बहुधान्यके’ [बहुधन्यक] लेख अंकित है जो सूचित करता है कि यह गणराज्य आर्थिक दृष्टि से समृद्धिशाली था.मुद्रा के पृष्ठ भाग पर गज तथा नन्दिपद का चिह्न अंकित है. इसी वर्ग की अन्य प्रकार की मुद्रा पर ब्राह्मी लिपि में लेख अंकित है जिसके बीच के कुछ अक्षर अस्पष्ट हैं.सुप्रसिद्ध मुद्राविद रोजर्स ने उसे ‘भूपधनुष’ पढ़ा है. जॉन एलन ने इसे ‘बहुधनके ‘ पढ़कर इसका संस्कृत रूप ‘बहुधान्यक’ बतलाया है. महाभारत में पश्चिम की ओर नकुल की विजय के प्रसंग में पंजाब के उर्वर प्रदेश को मानना अत्यंत समीचीन है. द्वितीय प्रकार की मुद्राएँ रजत निर्मित हैं. उक्त मुद्राएँ लगभग प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित हुईं.इनके अग्रभाग में षडानन कार्तिकेय को कमल पर खड़ा दिखाया गया है तथा ब्राह्मी लिपि में ‘यौधेयानाम भगवत स्वामिनो ब्राह्मणस्य देवस्य ‘लेख लिखा मिलता है. इसके पृष्ठ भाग में सुमेरु पर्वत, बोधि वृक्ष एवं नन्दिपद चिह्न अंकित है.

अंतिम प्रकार की मुद्राएँ कुषाण शासकों के अनुकरण के आधार पर ताम्र निर्मित हैं.इनका समय लगभग तृतीय एवं चतुर्थ शताब्दी ईसवी है.मुद्रा के अग्रभाग पर युद्ध देवता कार्तिकेय की आकृति और बायीं ओर मयूर की आकृति है.ब्राह्मी लिपि में ‘यौधेय गणस्य जयः’ अथवा ‘यौधेयानाम गणस्य जयः’ लेख अंकित है.पृष्ठ भाग पर बिन्दुमाला के बीच वाममुखी कटि विन्यस्त देवसेना [कार्तिकेय पत्नी ]का चित्रण हुआ है.यौधेयों की प्रारंभिक मुद्राओं से ज्ञात होता है कि द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व तक ये शासक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में शासनरत थे.’बहुधनके’लेख अंकित मुद्राएँ इस तथ्य को प्रकट करती हैं कि उन दिनों यह गणराज्य धनधान्य की दृष्टि से अत्यंत समृद्धिशाली था.

परवर्ती काल की मुद्राएँ कुषाण शासकों के अनुकरण के आधार पर निर्मित हुई थीं जिससे विदित होता है कि यौधेयों ने आर्जुनायनों और कुनिन्दों के साथ मिलकर कुषाणों का सामना करने के लिए अनेक राज्यों का संघ बनाया था. उल्लेखनीय है कि कुषाणों के विदेशी शासन की पराधीनता से भारत को मुक्त कराने में स्वाभिमानी एवं निर्भीक यौधेयों की महत्वपूर्ण भूमिका थी. कालान्तर में महान गुप्त सम्राटों की साम्राज्यवादी नीति के फलस्वरूप यह गणराज्य अपने अस्तित्व एवं प्रभुसत्ता को अक्षुण्ण रखने में असमर्थ सिद्ध हुआ.

वेद प्रताप सिंह

वेद प्रताप सिंह

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2 thoughts on “यौधेय गणराज्य : मुद्राशास्त्रीय अनुशीलन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आप के लेख बहुत अछे हैं , कृपा सरल हिंदी और कुछ इंग्लिश में लिखें तो धन्यवादी हूँगा किओंकि मुझे आप के लेखों में बहुत दिलचस्पी है लेकिन हिंदी इतनी नहीं जानता , इस लिए कुछ बातें समझ नहीं आतीं .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत नयी जानकारियों से पूर्ण लेख. लेखक को साधुवाद !

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