लघुकथा

आखिरी साड़ी

अब तो विमला के लिए होली का त्यौहार मात्र एक रस्म निभाने जैसा है। उनके परिवार में होली के ही दिन बहुत बड़ा हादसा जो हो गया था। बड़े बेटे के बच्चे की पहली होली थी। धूम धाम से उसके लिए पूजन की तैयारी चल रही थी। बस अब तो बुआ के ससुराल से आने का इंतजार हो रहा था। इतने में ही बुआ का देवर आया और उसके आते ही सारी तैयारी धरी की धरी रह गयी। बुआ होली की परिक्रमा कर रही थी। बहुत तेज हवा चलने के कारण और लोगो की अधिक भीड़ होने के कारण धक्का लगने से वो जलती हुई होलिका में गिर गयी. उसके कपड़ों ने आग पकड़ ली, जब तक बचाते तब तक लगभग शरीर जल चुका था। भाभी ने बड़े ही चाव से ननद को पीली साड़ी होली पर पहनने को दी थी। और वही साड़ी उसकी आखिरी साड़ी बन गयी या उसका कफ़न बन गयी ।

शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “आखिरी साड़ी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहन जी , कहानी दर्दनाक है लेकिन जैसा विजय भाई ने कहा है कि पता नहीं चला कि आप इस में किया सन्देश देना चाहती हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने अच्छी लघुकथा लिखने की कोशिश की है. पर कुछ कमजोर रह गयी है. इससे कोई सन्देश भी नहीं मिलता.

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