कविता

जैसे को तैसा

दूजे की बहन-बेटी के साथ
करें हंसी-ठिठोली
अपनी रखे छुपाय|
हद तब होई जाय
जब कोई फूहड़ता-पन
पर उतर आय |
अपनी बहन बेटी को
कोई भी बोले
अतिशीघ्र खून खौली जाय |
दूजे की बहन लगे देखने
आँख टिकाय
अपनी को रखे
दूजो से बचाय|
कब तक ऐसा होए
कभी तो सेर-पर सवा-सेर
मिली ही जाये|
तब मुहं ताकत बैठे रहे
अपनी गलती पर खूब
पछताय |
हाथ तब सर पर दे मारे
जब जैसे को तैसा
कहीं  मिली जाय |
||सविता मिश्रा||

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “जैसे को तैसा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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