कविता

आखिर क्यों

 

बदलते रुत की हवायें,
हल्का सर्द एहसास ,
लिये मेरे कमरे में ,
आई है!
साथ ही कुछ भूले बिसरे,
पलों की यादें कैद कर,
लाई है
जिन्होनें मेरे अंतर्मन में
हलचल सी मचा दी है!
एक चिर-परिचित सी,
खुशबू हवाओं को ,
महका गई है!
जब तुम पास होते,
तो अकसर में तुम्हें,
कहती ,कि ये खुशबू
मुझे बहुत पसन्द है
और तुम ढ़ेर सारा
इत्र मुझ पर झिडक
दिया करते .
और एक दिन
अचानक तुम मेरी
जिंदगी से दूर चले
गये आखिर क्यों??
इसका जबाब में
आज भी ढूँढ
रही हूँ….

…राधा श्रोत्रिय”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “आखिर क्यों

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत कविता !

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