कविता

कविता — बचपन

इठलाता लहराता
चाँद लेने की जिद कर
मचल कर रुठता
झील में परछांई
देख ख़ुशी से नाचता
परिंदों को पकड़ने
लपक कर दौड़ता
नाजुक सी पीठ पर
बस्ते को ढ़ोते
सुबकते ठुमकते
पाठशाला जाते हुये
उड़ कर खो गया
समय के फलक में
मासूम बचपन ……।
वक्त जिंदगी का
यौवन उन्मुक्त नदी सा
बह चला सपनों के संग
शोहदों सी बाधाओं से
टकराते उन्हें पछाड़ते
सागर से करने मिलन
रोटी,मोहब्बत,सम्मान,
मानव धर्म पालन सा
था पड़ाव जिंदगी का ……।
दिन ढ़लने लगा
पहाड़ों के पीछे
संध्या का आँचल ओढ़
समंदर की गोद में
समय के थपेड़ों से
उकरीं हुईं लकीरों
शिथिल सूरज सा
बुढ़ापा छिपने लगा
यादों में डूबा
कामना करता हुआ
लौटा दे कोई मुझे
फिर से मेरा बचपन…।
— मँजु शर्मा