स्वास्थ्य

पुरुषों में वृद्धावस्था में होने वाला मूत्र रोग प्रोस्टेट ग्रन्थि की वृद्धि का स्वरूप

ओ३म्

मनुष्य जीवन शैशवास्था में जन्म से आरम्भ होकर बाल, किशोर, युवा, प्रौढ़ वा वृद्धावस्था से होता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है। वृद्धावस्था में पूर्व की अवस्थाओं में शरीर की भली प्रकार से देखभाल अर्थात् आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य, आसन-प्राणायाम-व्यायाम-पैदल भ्रमण आदि में की जाने वाली असावधानियों के कारण व्यक्ति को अनेक रोगों से ग्रस्त होना पड़ सकता है। बुढ़ापे के रोगों तथा उनकी समस्याओं का हल करने को अंग्रेजी में Geriatrics कहते हैं। इसमें ‘जेरा’ Gera ग्रीक भाषा का शब्द है जो संस्कृत के ‘जरा’ शब्द का रूपान्तर है। संस्कृत में ‘जरा’ का अर्थ है-बुढ़ापा। ‘जरा’ से ही ‘जीर्ण’ शब्द बना है।  ‘जीर्ण’ का अर्थ है क्षीण या कमजोर।  इसीलिए जीर्ण-शीर्ण के रूप में इनका एक साथ प्रयोग भी होता है। बुढ़ापे की अनेक समस्याएं हैं यथा शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक आदि। शारीरिक समglandprostatस्याओं में वृद्धावस्था में नस-नाडि़यों व जोड़ों में कठोरता उत्पन्न हो जाती है। आंखों में कुछ लोगों को मोतिया उतर आता है, ऐसे ही पेशाब की भी एक भारी शिकायत कुछ लोगों को हो जाती है। किसी को पेशाब बूंद-बूद कर आता है, किसी को रुक जाता है, किसी को पेशाब में जलन होने लगती है, किसी को रात भर पेशाब आता रहता है, रात में पेशाब करने के लिए सात-आठ बार उठना पड़ता है, इसलिये इस विषय पर कुछ  विस्तार से लिखने की आवश्यकता है। वृद्धावस्था में पेशाब की इन बीमारियों को कई कारण हो सकते हैं, परन्तु उनका सबसे बड़ा कारण प्रोस्टेट-ग्रन्थि का बढ़ जाना है। प्रोस्टेट-ग्रन्थि के बढ़ जाने के विषय में कुछ कहने के पहले यह जान लेना आवश्यक है कि यह ग्रन्थि क्या है, शरीर में कहां स्थित है, इसका उपयोग क्या है और इसका आकार प्रकार कैसा है?

शरीर में अन्य ग्रन्थियों (Glands) की ही तरह से पुरूषों में प्रोस्टेट (Prostate)  भी एक ग्रन्थि है। पुरुष शरीर के सामने की ओर, नाभि के नीचे, जनन प्रदेश में जहां बाल होते हैं, वहां हाथ से दबाने पर भीतर एक हड्डी महसूस होती है। इसे अंग्रेजी में ‘प्यूबिक-बोन’ (Pubic bone) कहते हैं। शरीर के पीछे के भाग में जहां गुदा-प्रदेश है, वहां नोकदार एक हड्डी है जिसे अंग्रेजी में ‘कोक्किक्स’ (Coccyx) कहते हैं। इन दोनों हड्डियों को सीधा मिला दिया जाय तो वह रेखा प्रोस्टेट को छूती हुई आगे निकल जाती है। इसी स्थान पर ‘मूत्राशय’ (Bladder) से निकलती हुई ‘मूत्र-नली’ (urethra) मौजूद है। यह मूत्र-नली जिसके द्वारा मूत्राशय से पेशाब निकलता है, इस प्रोस्टेट को पार करती हुई, या इसके बीच से होकर गुजरती है। प्रोस्टेट-ग्रन्थि का बहुत-सा हिस्सा मूत्र-नली के नीचे तथा कुछ हिस्सा इस नली के ऊपर होता है। प्रोस्टेट ग्रन्थि मूत्र-नली को इस प्रकार घेरे रहती है जैसे अंगूठी अंगुली को घेरे रहती है। यह प्रोस्टेट सारी मूत्र-नली को नहीं घेरती अपितु जिस स्थान पर से उक्त दोनों हड्डियों की लकीर गुजरती है वहां मूत्र-नली को प्रोस्टेट घेरता है। ‘मूत्राशय’ के मुख से ‘मूत्र-नली’ शुरू होती है। ‘मूत्राशय’ का मुख तथा ‘मूत्र-नली’ जहां इससे जुड़ती है, वह प्रोस्टेट-ग्रन्थि का स्थान है। यह स्थान गुदा के भीतर बड़ी अंगुली को डाल कर अनुभव किया जा सकता है। इसलिये गुदा के भीतर अंगुली डाल कर देखने से अगर प्रोस्टेट बढ़ा हुआ हो, तो उसे अंगुली से छूकर मालूम कर सकते हैं। ‘प्रोस्टेट-ग्रन्थि’ पुरुषों में ही होती है, इसलिये इसका एक अन्य नाम ‘पुरुष-ग्रन्थि’ भी है।

इस पुरुष-ग्रन्थि का आकर युवा-व्यक्ति में एक छोटे अखरोट जितना होता है। डेढ़ इंच चैड़ाई में, एक इंच लम्बाई में और तीन-चैथाई इंच मोटाई में होता है। इसका भार लगभग 3.5 ड्राम अर्थात् 6.20 ग्राम होता है। इसका स्राव लेकर कुछ क्षुद्र-नलियां मूत्र नली में खुलती हैं। जब अंडकोशों से वीर्य निकलकर मूत्र-नली में पहुंचता है, तब प्रोस्टेट का स्राव उस वीर्य के साथ मिलकर ‘शुक्राणुओं’ (Sperms) को स्त्री के गर्भाशय में जाने को गति देता है। अगर प्रोस्टेट का स्राव शुक्राणुओं के साथ न मिले, तो वीर्य की मात्रा कम होने के कारण वह आगे गतिशील नहीं होता, वहीं-का-वहीं पड़ा रहता है और ऐसी स्थिति में सन्तानोत्पत्ति नहीं हो सकती।

पुरूष-ग्रन्थि के बारे में कुछ और जान लेते हैं। आयु बढ़ने के साथ प्रोस्टेट का परिमाण बढ़ने लगता है। प्रायः 50 वर्ष की आयु होने के बाद यह प्रोस्टेट बढ़ना आरम्भ कर देता है। सर हैनरी टामसन को जो आंकड़े प्राप्त हुए उनसे पता चलता है कि 55 वर्ष की आयु के बाद 33 प्रतिशत पुरुषों का प्रोस्टेट बढ़ जाता है। परन्तु उनमें से कष्ट केवल 5 प्रतिशत पुरूषों को ही होता है। कई विशेषज्ञयों का कहना है कि 50 वर्ष की आयु के बाद लगभग 50 प्रतिशत पुरुषों को प्रोस्टेट के बढ़ने की समस्या हो जाती है। ग्रन्थि के बढ़ने की दिशा का पता लगाने पर मालूम हुआ है कि ‘सीवन’- मूलाधार-(Perineum) की तरफ से यह अधिक मोटा व कठोर होता है, मूत्राशय की तरफ से इतना मोटा नहीं होता। इसलिये बढ़े हुए प्रोस्टेट को गुदा में अंगुली डालकर महसूस किया जा सकता है। अखरोट के परिमाण से बढ़कर प्रोस्टेट एक मौसमी और किसी-किसी में नारियल के परिमाण तक का हो जाता है।

अब हम प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ जाने पर रोगी को स्थिति व इससे सम्भावित रोगों का वर्णन करते हैं। ‘मूत्र-नली’ के कितने भाग को प्रोस्टेट घेरता है, यह इस बात पर निर्भर है कि प्रोस्टेट बढ़कर कितना बड़ा हो गया है। प्रोस्टेट के बढ़ जाने से मूत्र-नली पर जो दबाव पड़ता है उससे मूत्र-नली बन्द हो जाती है और ‘मूत्राशय’ में मूत्र जमा होने लगता है, मूत्र विसजर्न या पेशाब करते हुए सारा मूत्र बाहर नहीं निकल पाता। मूत्राशय में जो पेशाब गुर्दे की ‘मूत्र-वाहिनियों’ (Ureters) से आकर जमा होता रहता है, बाहर निकलता नहीं, उसे ‘अवशिष्ट-मूत्र’ या बचा हुआ मूत्र (Residual urine) कहते हैं। जब प्रोस्टेट के बढ़ जाने से मूत्राशय में से पूरा मूत्र नहीं निकलता, उसमें बचा रहता है, तब मूत्राशय की दीवारें कठोर होती जाती हैं ताकि इस ‘अवशिष्ट-मूत्र’ को सम्भाल सकें। कभी-कभी यह अवशिष्ट-मूत्र कई लिटर तक जमा हो जाता है और रोगी को पता भी नहीं चलता। ‘सीवन’ (Perenium)- मूलाधार के स्थान को दबाने से यह ‘अवशिष्ट-मूत्र’ निकल जाता है। धीरे-धीरे मूत्र न निकलने के कारण मूत्र-नली द्वारा आगे को बाहर जाने के स्थान में असमर्थ होने पर पीछे को ओर जोर मारता है और मूत्राशय तथा गुर्दों पर जोर पड़ने से रक्तचाप बढ़ जाता, हृदय का रोग हो जाता है, बवासीर हो जाती है और गुदा-प्रदेश के अनेक रोग आ घेरते हैं व इनकी प्रबल सम्भावना बनती है।

इस पुरुष-ग्रन्थि रोग पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि वृद्धावस्था में जिस प्रकार से अन्य अंगों में कठोरता आ जाती है उसी प्रकार से इस पुरुष-ग्रन्थि की वृद्धि व इसके कठोर होने से प्रोस्टेट का रोग होता है। यदि किसी को मूत्र कम मात्रा में, रूक-रूक कर, बूंद-बूंद करके, थोड़ी-थोड़ी देर बाद, अस्वाभाविक रूप से पीड़ा के साथ तथा मूत्र स्थान पर जलन आदि उत्पन्न कर आता है तो रोग की जांच कराना आवश्यक है। आघुनिक चिकित्सा विज्ञान ने मूत्राशय की परीक्षा हेतु एक यन्त्र विकसित किया हुआ है जिसे सिस्टोस्कोपी (Cystoscopy) कहते हैं। प्रोस्टेट की स्थिति को विस्तार से जानने के लिए चिकित्सा विशेयज्ञ इस यन्त्र का उपयोग करते हैं। इससे प्रोस्टेट के संबंध में यथार्थ स्थिति को जानने में सहायता मिलती है। अतः रोगी को आधुनिक एलोपैथी के चिकित्सक से इस यन्त्र द्वारा जांच कराकर आश्वस्त हुआ जा सकता है जिससे रोग की सही स्थिति का ज्ञान होने सहित आधुनिक चिकित्सा विज्ञान प्रदत्त ओषधियों व शल्य क्रिया द्वारा निदान किया जा सकता है। होम्योपैथी में भी इसके लिए अनेक ओषधियां हैं जिसके लिए पाठकों को डा. सत्यव्रत सिद्धान्तांकार जी की पुस्तक बुढ़ापे से जवानी की ओर’ का अध्ययन करना चाहिये। व्यायाम, आसन व योग भी रोग को नियंत्रित करने में लाभप्रद होते हैं परन्तु ग्रन्थि के अधिक कठोर होने व उसके बड़े आकार की होने पर तो चिकित्सकीय जांच व उपचार की ही अपेक्षा होती है। व्यायामों में सिद्धासन, मूत्राशय पर दबाव डालने वाले व्यायाम वा आसन तथा न्यौली क्रिया विशेष लाभदायक होती हैं। आसन करते समय यह प्रयास करना चाहिये कि इन आसनों  का दबाव व प्रभाव मूत्राशय पर पड़े जिससे ग्रन्थि के कड़ेपन को दूर करने में सहायता के साथ उसमें कुछ लचक पैदा हो सके। हमें व्यायाम द्वारा मूत्राशय के स्थान पर संकोचन तथा प्रसारण (Contraction and Relaxation) की प्रक्रिया को अपनाना चाहिये। यह क्रिया प्रोस्टेट ग्रन्थि को स्वस्थ रखने के लिए लाभप्रद है। व्यायाम व प्राणायाम आदि से संकोचन व प्रसारण करने से नस-नाडि़यों व मांस-पेशियों के भीतर का जमा रूधिर फैलता है। ऐसा करने से जमा हुए रक्त के निक्षेप वा मल निकल जाते हैं जिस प्रकार कि बर्तन को घिसने व रगड़ने से उसका मैल छूट जाता है। हमने इस लेख में पुरूष ग्रन्थि रोग का वर्णन रोग का परिचय देने के लिए किया है। उपचार के लिए पीडि़त बन्धुओं को पुस्तकों व नैट पर उपलब्ध जानकारियों से लाभ उठाना चाहिये व योग्य व विशेषज्ञ चिकित्सकों से चिकित्सा करानी चाहिये।

संकलनकर्तामनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “पुरुषों में वृद्धावस्था में होने वाला मूत्र रोग प्रोस्टेट ग्रन्थि की वृद्धि का स्वरूप

  • मनमोहन जी , कुछ लेट पड़ा लेकिन आप का लेख बहुत अच्छा लगा ,जिस से बहुत जानकारी हासल हुई है , धन्यवाद .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। यह लेख सिर्फ अपने व पाठकों की जानकारी के लिए ही तैयार किया है। देहरादून से वैदिक साधन आश्रम, तपोवन की एक मासिक पत्रिका “पवमान ” निकलती है। अक्टूबर २०१५ का वह स्वास्थ्य विशेषांक निकाल रहे हैं। इसके लिए यह लेख लिखा है क्योंकि यह पत्रिका अधिकांश बुजुर्गों द्वारा ही पढ़ी जाती है। लेख पसंद करने और मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

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