गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

शाद आँखों में हमेशा अश्क का चेहरा मिला
धूप की दीवार में भी दर्द का साया मिला

कौन है शामिल मुझी में हू-ब-हू मेरी तरह
सो गया मैं रात में तो शख़्स वो जगता मिला

चाँद बे-शक खूब लगता है मगर जब रात में
पानियों पर आ गया तो अक़्स पर धब्बा मिला

प्यास की जिद थी कि लेकर पास दरिया के चलो
पास दरिया के मगर प्यासा पड़ा सहरा मिला

दे रहे थे आप धोखा तो हुए नाराज क्यूं
जब किसी भी और से भी आपको धोखा मिला

है अभी जिन्दा हमारे गाँव में तहजीब सब

पर शहर में आपके बस झूठ का दावा मिला

— दिलीप विश्वकर्मा

दिलीप विश्वकर्मा

नाम-दिलीप कुमार विश्वकर्मा ग्राम व पोस्ट - खुरासों तहसील-फूलपुर जनपद-आज़मगढ़ ई मेल -dileepvishwakarma1984 @gmail.com मो न.-08418068700

3 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    गजल में तुकांत जरूरी होता है क्या ?

    • विजय कुमार सिंघल

      हाँ अत्यन्त आवश्यक है, तभी तो गजल बनती है। इसे क़ाफ़िया कहते हैं।

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