गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

प्यार में लाख शिकवा गिला कीजिये

मुस्कुराते हुये बस मिला कीजिये ।

जिंदगी का सफर शूल की है डगर
मुस्किलों का जरा सामना कीजिये।

प्यार का रोग मुझको लगाया सनम
दर्द दिल की मिरे अब दवा कीजिये ।

आप को देख कर रात गुजरे मिरी
चाँद बनकर फ़लक पर रहा कीजिये।

सर झुका के तुझे ‘धर्म’ जीना पड़े
काम ऐसे न जग में किया कीजिये ।

— धर्म पाण्डेय

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह .

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