कहानी

बहुत देर कर दी मेरे दोस्त

अवतार आज पूरे २० साल बाद वतन वापिस आया था, एयरपोर्ट से बाहर आते ही वतन की भूमि को प्रणाम किया. बाहर चाचा जी उसे लेने आये हुए थे. उनके चरण छुए चाचा ने ढेरों आशीर्वाद देते हुए कहा, ”बेटा तुम बरसों के बाद आज लौटे हो , हमारी तो नज़रें ही तरस गईं तुम्हें देखने को. ” कहते हुए उनकी आंखें भर आईं. अवतार ने चाचा जी को प्यार से गले लगाते हुए कहा “चाचा जी विदेश में हम भी अपनों के प्यार को बहुत तरसे हैं, आज कहीं जा कर दिल को ठंडक मिली है. ”चाचा जी ने जब अवतार की पत्नि और बच्चों के बारे में पूछा, तो अवतार ने बताया की बच्चों के इम्तिहान होने के कारण वो चार हफ्ते बाद आएंगे. चाचा जी ने सारा समान टैक्सी में रखवाया. वे टेक्सी में बैठे और, बातों-ही-बातों में टैक्सी गांव पहुंच गई.
घर पहुंच कर अवतार परिवार वालों से मिले, चाय पानी पीते हुए सब की खबर-हाल पूछते हुए, चाचा जी से अपने बचपन के दोस्त जागीर के बारे में पूछा, तो चाचा जी ने बताया कि जागीर की पत्नी आठ साल पहले गुज़र गई और जागीर भी कुछ ठीक नहीं रहता. रात हो चुकी थी अवतार अपने दोस्त जागीर के बारे में सोचने लगा. दोनों बचपन से ही जिगरी दोस्त थे पर कुछ बातों में उनकी सोच में, ज़मीन-आसमान का अंतर था. जागीर गाव के ज़मींदार का इकलोता बेटा था. पिता और दादा-दादी के लाड़-प्यार ने उसे बिगाड़ रखा था. जागीर बहुत गुस्से वाला था. क्रोध आने पर , बड़े-छोटे तक का लिहाज़ भूल जाता था. जागीर की मां उसके इस व्यवहार से बहुत दुःखी होती. उसे समझाती, पर वह उस पर भी चिल्ला देता, क्योंकि अक्सर ज़मींदार भी अपनी पत्नि का अपमान कर दिया करता था. जागीर को ये शिक्षा अपने पिता से प्राप्त हुई थी. जागीर और अवतार दोनों एक ही स्कूल में पढ़े, साथ खेल कर बड़े हुए. अवतार अक्सर जागीर को सही और गलत के बारे में समझाता रहता, पर किसी के स्वभाव और सोच को कहां बदला जा सकता है!
घर वालों ने जागीर के लिए एक बहुत ही सुन्दर नेक और सुशील लड़की की खोज की और उसकी शादी करदी. कुसुम नाम की ये लड़की, जागीर के स्वभाव से बिलकुल विपरीत थी. बहुत शांत, संस्कारी और आज्ञाकारी लड़की थी. अवतार की शादी भी बहुत नेक और अच्छी लड़की से हुई. अवतार और उसकी पत्नि सीमा अपनी ज़िन्दगी में बहुत खुश थे. दोनों ने प्यार और आपसी समझदारी से अपनी दुनिया को स्वर्ग से सुन्दर बना लिया था.
दूसरी तरफ जागीर अपने स्वभाव के मुताबिक अपनी पत्नि पर हुकुम चलाता, हर किसी के सामने बिना बात उसे अपमानित करता रहता, जैसे कि वह मर्द है, तो औरत को दबा कर रखना उसका जनम सिद्ध अधिकार हो. कुसुम इन सब जुल्मों के बावजूद अपने पति का बहुत ख्याल रखती, उसकी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ती और अपनी तक़दीर को भगवान की मर्ज़ी मानकर सब कुछ सहती रहती. शादी को पांच साल बीत गए. जागीर दो बच्चों का बाप बन चुका था, पर उसका व्यवहार न बदला. अवतार जागीर को समझाते हुए कहता, “अपनी ज़िन्दगी को इस तरह नरक मत बना, अपने आप को बदल ले मेरे दोस्त, कम-से-कम भाभी जी से इज़्ज़त से बात किया कर उनके प्यार और समर्पण को समझ ले, प्यार का जवाब प्यार होता है नफरत नहीं.” पर, जागीर पर इन सब बातों का कोई असर नहीं होता. वह तो कुसुम पर हुकुम चलाने में अपनी शान समझता था. यही तो सीखा था उसने बचपन से, जिस माहौल में उसकी परवरिश हुई थी, उसी सांचे में ढला था वो, बिलकुल अपने पिता के नक़्शे कदमों पर चल रहा था.
एक दिन जागीर कुछ ढून्ढ रहा रहा था उसने सारा कमरा अस्त व्यस्त कर रखा था और बड़बड़ा रहा था ” पता नहीं मेरे जरूरी कागजात कहाँ चले गए कितनी बार इस औरत को कहा है मेरी चीजें इधर से उधर नहीं होनी चाहिए । ” आज फिर कुसुम की शामत आने वाली थी, पर इसमें कुसुम की गलती तो थी ही नहीं, जरूरी कागजात जागीर खुद ही संभालता था | कुसुम तो कभी तिजोरी को हाथ तक नहीं लगाती थी. और सदा इस बात का ख़याल रखती की उससे कोई भूल न हो जाए ताकि घर में बिना बात कलेश न हो, वो तो बस सदा इसी कोशिश में रहती की प्यार नहीं तो कम से कम घर में शान्ति ही बनी रहे , जागीर को किसी भी बात पर गुस्सा न आये |

तबी सहमी हुई कुसम खाने की थाली लिए अंदर आई ,उसके आते ही कागजातों के बारे में पूछते हुए जगीर उस पर बरस पड़ा| उसके साथ साथ उसके माता पिता को भी कोस डाला गुस्से में लाल लाल आँखे दिखाते हुए गरजते हुए बोला “ ले जाओ अपना खाना वाना….. मुझे नहीं चाहिए |” डरी हुई कुसुम उसे शांत करने के लिए धीरे से बोली लेकिन जी… मु..झे नहीं पता की कागजात …. उसकी बात को बीच में ही काटते हुए जगीर ने खाने वाली थाली को फर्श पर फेंक दिया घर में काम करने वाले नोकरो के सामने कुसुम को अपमानित करने लगा और अपने कड़वे शब्दों से कुसुम के दिल को छलनी कर दिया । कुसुम की आँखों से बहती गंगा को नजर अंदाज करके बस क्रोध में उस पर चिलये जा रहा था | कुसुम पर चिल्लाना ,उसका नित्य का काम था |

दरवाजे पर खड़े , अवतार और सीमा ने यह सब होते हुए देख लिया जो उन दोनों से मिलने आये थे , कुसुम रोते हुए रसोई घर चली गई तभी सीमा ने उससे पुछा ” किस मिटटी की बनी हो कुसुम , कैसे सह लेती हो सब कुछ ,भाई साहब को रोकती क्यों नहीं|” कुसुम ने आंसू पोंछते हुए कहा” इन्हे समझाने की कोशिश की थी पर तलाक की धमकी सुन कर चुप कर गई अब तो किस्मत के लिखे को सवीकार कर चुकी हूँ , ये चाहे पति धर्म भूल गए हो , मैं अपना पत्नी धर्म निभाउंगी शायद मेरा प्यार इनको एक दिन बदल दे ।”
अवतार ने जागीर का गुस्सा शांत करने के लिए नौकर से ठंडा शरबत मंगवाया और गलास उसे देते हुए बोला ” ले भाई ठंडा शरबत पी और बता इतना गुस्सा किस बात पर … ऐसी भी क्या बात हो गई | तब जगीर ने उन कागजातों की बात बताई और फिर से कुसुम को बुरा भला कहने लगा तो अवतार कुछ सोचते हुए कहने लगा रुक जा मेरे भाई . कही यह वो वाले कागजात तो नहीं जो उस दिन तुमने दूकान की तिजोरी में रखे थे | मुझे याद है तुमने दिखाए थे मुझे … अब जागीर शांत हो चूका था उसे याद आ गया था की उसने वो कागजात कहा रखे है अब अवतार जगीर को समझाने लगा ” देख जगीर मैं तेरा दोस्त हु, हमेशा तेरा भला ही चाहुगा तुमने अपनी गलती का गुस्सा खाम्खा भाभी जी पर उतार दिया .. भाभी जी से ऐसा सलूक करना अच्छी बात नहीं , तुम बहुत खुश किस्मत हो जो कुसुम भाभी जैसी पत्नी तुम्हे मिली है , इतनी अच्छी और वफादार जीवन साथी किस्मत वालो को ही मिलती है , परमात्मा की और से मिले इस अनमोल तोहफे की कदर कर यार , कही एक दिन तुझे पछताना न पड़े ।”

कुछ महीनो बाद अवतार कैनेडा चला गया और वही बस गया । दोस्त के बारे में सोचते सोचते उसकी आँख लग गयी | सुबह वह जागीर के घर पहुंचा तो जगीर घर के कोने में एक सोफे पर कम्बल ओढे बैठा था बहुत कमजोर लग रहा था इतने सालो बाद अवतार को देख कर उसके गले लग फुट फुट कर रोने लगा और बोला ” तुम जैसे यार की नसीहतों को समझ नहीं पाया, उम्र भर अपने जीवन साथी की अहमियत को समझ नहीं सका , उसे प्यार के बदले नफरत देता रहा । कुसुम सचमुच रब का दिया एक अनमोल तोहफा थी जिसे मैंने खो दिया और आज कंगाल हो गया हु काश मुझे वो बीता वकत वापिस मिल जाये और मैं अपनी गलतियों को सुधार पाऊ ।
अवतार को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की इस पछतावे का किया जवाब दे बस यही बोल पाया ” तुमने समझने में बहुत देर कर दी मेरे दोस्त , गुजरा वक्त और मोत की आग़ोश में गया इंसान कभी वापिस नहीं आता ।”

6 thoughts on “बहुत देर कर दी मेरे दोस्त

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी मनजीत कौर जी, अत्यंत मर्मस्पर्शी कहानी के लिए आभार. इतनी सुंदर भाषा-शैली, कि मन कर रहा था, यह कहानी खत्म ही न हो. शिक्षा भी नायाब- ”गुज़रा वक्त और मौत के आगोश में गया इंसान कभी वापिस नहीं आता.”

    • मनजीत कौर

      आदरणीय प्रिय सखी जी मुझे बहुत ख़ुशी हुई की आप मेरे ब्लॉग पर आई और मेरी होंसला अफजाई की, जिस के लिए मैं आप की दिल की गहराईओं से शुक्रगुजार हूँ जी । कहानी आप को पसंद आई मेरे लिए सौभाग्य की बात है अतिसुन्दर कॉमेंट के लिए शुक्रिया आशा करती हूँ की आप आगे भी इसी तरह मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए ब्लॉग पर आती रहेंगी धन्यवाद

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी मनजीत कौर जी, अत्यंत मर्मस्पर्शी कहानी के लिए आभार. इतनी सुंदर भाषा-शैली, कि मन कर रहा था, यह कहानी खत्म ही न हो. शिक्षा भी नायाब- ”गुज़रा वक्त और मौत के आगोश में गया इंसान कभी वापिस नहीं आता.”

  • बहुत अच्छी और शिक्षा भरपूर कहानी .

    • मनजीत कौर

      आदरणीय भाई साहब कहानी पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया जी

    • मनजीत कौर

      आदरणीय भाई साहब, कहानी पसंद करने और होंसला अफजाई करने के लिए दिल की गहराईयों से शुक्रिया जी |

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