कवितापद्य साहित्य

~निष्कपट-निष्कलंक~

लड़की !
निष्कपट-निष्कलंक थी
गन्दी लड़की!
हाँ बदनाम कर  दी गयी थी!
इसी नाम से
गाँव के ही काका ताऊओ द्वारा |
गन्दी फोटो उसने नहीं बांटी थी
बल्कि गाँव के ही
कुछ मनचले युवकों द्वारा
उतार ली गयी थी चुपके से
तालाब पर नहाते !
कपड़े बदलते !
वह तो मासूम सी लड़की थी
कुछ सिरफिरे मुहं बोले भाइयों ने
उसका मजाक उड़ाने के लिए
पुरे गाँव में तस्वीरें बाँट दी थी
हर आँख द्वारा वह
खुद को घूरता पाती थी
जब भी घर से बाहर निकलती !
घर में भी माता-पिता-भाई
अक्सर ही आँख तरेरे रहते थे
जैसे उसने ही
किया हो कोई अपराध
घूरती-तरेरती आँखों से
भयभीत हो गयी थी
हर वक्त खुद को
कैद में पा रही थी
अतः आज
आजाद पक्षी की तरह उड़ चली थी
किसी अनजाने शहर की ओर
यह सोचकर कि
शायद वहाँ नहीं मिलेगें
ऐसे कोई कलंकित रिश्तें
पर वह भ्रम में थी !

हर कहीं बैठे होंते हैं
भाई-चाचा-दादा
गिद्ध नजर लगाये
किसी गौरया की तलाश में|..सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|