गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बड़ी खूब सूरत कहानी है यारों ।
मेरे पास उसकी निशानी है यारों ।।

उन आँखों का मंजर हुआ कातिलाना।
खुदा जाने कैसी जवानी है यारों ।।

मुहब्ब में उलझी रही आसनाई।
कहाँ बात ज्यादा पुरानी है यारों।।

सरे बज्म उसके गुजर जाती रातें ।
मुकद्दर से मिलती रवानी है यारों ।।

पिघलना बहकना व् फिर बहते जाना ।
हुई इश्क में पानी पानी है यारों ।।

बचे तिश्नगी न तेरी मैकदे में ।
यहां शाम हासिल सुहानी है यारों ।।

नज़र फेर बैठी है लहरा के जुल्फें ।
उसे हो गयी बदगुमानी है यारों ।।

नहीं नासमझ वो नहीं है वो कमसिन ।
नज़र में वो सबके शयानी है यारों ।।

उसे छोड़ कर वह नहीं जायेगी अब ।
उमर भी तो उसको बितानी है यारों ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

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