गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

उँगलियाँ सब पे वो उठाता है
अपनी कमियां मगर छुपाता है ।

मुश्किलों में भी हौसला रखिये
फूल कांटों में मुस्कुराता है ।

कद्र इंसान की नहीं होती
रोज पत्थर को पूजा जाता है ।

नोट गिनने में उम्र कट जाती
हाथ खाली सभी का जाता है ।

मंजिलें चूमती कदम उसके
चोट खा कर जो मुस्कुराता है ।

धर्म दिल सोच के लगाना तुम
इश्क में दिल फरेब खाता है ।

— धर्म पाण्डेय