बाल कहानी

गोलू

गोलू अपने माँ बाप का इकलौता दुलारा बेटा है। बहुत लाड़ प्यार में शरारती होना लाजमी है और बचपन का यह गुण सराहना का पात्र भी है । धीरे धीरे गोलू बढ़ने लगा उसके साथ ही साथ उसकी शरारत भी बढ़ने लगी। साथी बच्चों में वह खूब मशहूर है कारण उसके पास मंहगे खिलौनों का भंडार है। इसी लिए जब तक वह खेल के मैदान में न आ जाए सारे बच्चे उसकी राह देखते थे और उसके आते ही धमाल चौकड़ी शुरू हो जाती है जिसका हर बच्चों को बेसब्री से इंतजार रहता है। लेकिन उसके अड़ियल और जिद्दिपने से सब के सब उससे परेशान भी हो जाते हैं और खेल बिच में रुक जाती थी। हर बच्चे खिन्न होकर घर चले जाते है और दूसरे दिन फिर गोलू के इंतजार होती। गोलू इससे और भी मनमानी करता और घर से महंगे खिलौने की मांग करता, न मिलने पर खाना पीना छोड़कर नाराज हो जाता। फिर नया खिलौना आता और गोलू की विजय हो जाती। इसी में खोया हुआ गोलू पढने से कतराने लगता और स्कुल में भी पढाई लिखाई से दूर ही रहता है। उसके माँ बाप को इसकी चिंता होने लगी और गोलू पर पढने का दबाव बढ़ने लगा जिससे गोलू और भी चिढ़चिढ़ा हो गया। स्कुल हो या घर अब उसको प्यार की जगह डांट फटकार मिलने लगी जिससे वह और भी बहक गया और बच्चों से भी झगड़ने लगा। धीरे धीरे अन्य बच्चे भी उससे दूर होते गए और गोलू अकेला हो गया। गोलू अब गुमसुम सा और बीमार सा रहने लगा। उसके माँ बाप को बहुत ही चिंता हो गई, समझाने बुझाने के बाद भी गोलू में सुधार न हुआ और वह अपने घर में खुद ही कैद होकर रह गया।
कुछ दिन घर में रहते रहते उसकी निगाह गौरैया के घोसलें पर गई जिसे वह रोज बड़े ध्यान से देखता रहता। एक दिन गौरैया दाना लेकर आई और अपने बच्चों को खिला रही थी बच्चे चु चु करके अपनी माँ से लिपट गए और दाना खाकर माँ के साथ खेलते खेलते सो गए। गोलू ने यह बात अपनी माँ से बताई और कहा कि माँ गौरैया अपने बच्चों को दाना कहाँ से लाती है और अपने बच्चों से क्या कहती है। तो माँ को लगा कि गोलू की जिज्ञासा में सुधार की गुंजाइस है अतः बड़े प्यार से गोलू को पुचकार कर कहा बेटा, गौरैया बहुत दूर दूर जाकर अपने बच्चों के लिए दाना चुंगती है और लाकर खिलाती है ताकि वे जल्दी से बड़े होकर अपना दाना खुद ही चुंग सके और उन्हें पढ़ाती है कि तुम भी बड़े होकर उड़ोगे और अच्छे अच्छे दाना लाकर मुझे और पापा को खिलाओगे। इसके लिए उड़ाना होगा और दाना को पहचानना होगा, मेहनत करनी होगी अन्यथा दाना नहीं मिलेगा। तो गोलू ने माँ से पूछा तुम ही उसको दाना क्यों नहीं दे देती हो उसको दूर जाना पड़ता है। माँ ने कहा कि कल तुम उसको दाना दे देना। दूसरे दिन गोलू ने उसके घोसलें में ढेर सारा दाना डाल देता है जिसे देख गौरैया डर गई और घोसला छोड़कर अपने बच्चों को लेकर कहीं दूर चली गई। तीसरे दिन गौरैया को न देख गोलू परेशान हो गया और अपनी माँ से पूछा कि गौरैया कहाँ चली गई और क्यों चली गई। तो माँ ने उसे बताया कि बेटा गौरैया डर गई है कि अब मेरा घोसला सलामत नहीं है जरूर किसी की नजर मेरे बच्चों पर है और उड़ गई। गोलू के समझ में बात न आई तो फिर पूछा इसमे क्या खतरा है उसे दाना तो मिल गया और क्या चाहिए उसे। तो माँ ने कहा उसे अपनी नहीं बच्चों की फिकर थी कि बच्चे उड़ना और दाना लाना नहीं सीखेंगे तो इनका जीवन बेकार हो जायेगा, रोज इन्हें कौन दाना देगा। तो गोलू बोला उड़ना तो जरुरी है। तो माँ ने कहा कि तुम्हारा पढना भी जरुरी है कब तक पापा और मम्मी तुम्हारे खिलौने और खाने की ब्यवस्था करेंगे।पर तुम तो घर में बैठकर पढना ही छोड़ दिए हो और हम लोगों से नाराज भी रहते हो। अब हम लोग भी यह घर छोड़कर कहीं दूर चले जायेंगे। गोलू को बात समझ में आ गई और अपनी माँ से लिपट कर रोने लगा और कहने लगा नहीं माँ घर छोड़कर मत जाना हम अब कल से पढने जायेंगे। अब गोलू एक अच्छा लड़का बन गया है और स्कूल में सबसे तेज विद्यार्थी है। अपने माँ बाप की हर बात मानता है और अच्छी अच्छी बातों को सुनकर उनसे सीख लेता है।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ