कविता

कविता : अजनबी

एक अजनबी और,
कभी अपना सा,
दिल की देहरी पर जो,
दस्तक देता है बार बार।
अजीब सी कश्मकश है,
कैसे यकीन कर लूँ,
और खोल दूँ,
वो वर्षों से बन्द द्वार।
छुपाई है भीतर जिसके,
तनहाइयां अपनी,
और दबा रक्खा है,
दर्द हज़ार।
अधूरी ख्वाहिशें हैं ,
और अनचाही बंदिशें,
निकलना चाहती हूँ मैं भी,
तोड़कर रस्मों की कारागार।
उसकी आहट से ही,
गूंजी है सरगम सी,
उसकी आवाज़ से,
बजने लगा है,
मेरे मन का तार।
जिसको छूकर है,
हवाएं महकी ,
गुल सा खिल के,
महकने लगा है
मेरा संसार।

सुमन शर्मा 

सुमन शर्मा

नाम-सुमन शर्मा पता-554/1602,गली न0-8 पवनपुरी,आलमबाग, लखनऊ उत्तर प्रदेश। पिन न0-226005 सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें- शब्दगंगा, शब्द अनुराग सम्मान - शब्द गंगा सम्मान काव्य गौरव सम्मान Email- rajuraman99@gmail.com

One thought on “कविता : अजनबी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    वाह
    अति सुंदर

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