संस्मरण

संस्मरण : काबिलियत की कसौटी पर किन्नर

बात हमारे बचपन की है. हमारे बाबूजी की बाजार में एक छोटी-सी दुकान थी. उन दिनों हम बहुत छोटे थे. लगभग नौ या दस साल की आयु में भी हम दोनों भाई स्कूल जाने से पहले दुकान पर ही कुछ-कुछ करते हुए अपना समय व्यतीत करते थे. तरह-तरह के भिखारियों के अलावा किन्नर भी सभी दुकान वालों से मांगने आते थे और दुकान के करीब आते ही विशेष तरीके से ताली बजाते, जो हमारे बाबूजी को कतई पसंद नहीं था. बाबूजी उसे आइंदा ताली न बजाने की सलाह देते हुए ही कुछ देते. कई बार किन्नरों को समझाने के बावजूद न वो कुछ समझने को तैयार थे और न ही बाबूजी हार मानने को तैयार थे.

एक दिन अचानक एक नया किन्नर जिसका नाम रानी था, कुछ किन्नरों के साथ मांगने आया और स्वभावतः हमारी दुकान पर भी ताली बजाने लगा. बाबूजी मन-ही-मन क्रोधित तो हुए, लेकिन किन्नर का विचार कर उसे प्यार से समझाने की कोशिश करने लगे. जब तुम्हें मैं ताली बजाये बिना ही दे देता हूं, तो फिर तुम्हारी क्या मजबूरी है ताली बजाने की? किन्नर का जवाब सुनकर बाबूजी चौंक गए थे और हम दोनों भाई भी कुछ-कुछ समझ रहे थे. रानी ने कहा था ” बाबूजी! सभी आपकी तरह सज्जन नहीं हैं. इन्हीं हरकतों से रिझाना और कुछ हासिल करना हमारी मजबूरी है. फिर भी अगर आप कह रहे हैं, तो हम आइंदा ताली न बजाने की कोशिश करेंगे.”

अगले ही दिन हमें आश्चर्यचकित करते हुए रानी ने दूर से ही बाबूजी को दोनों हाथ जोड़ते हुए “जय राम जी की बाबूजी !” कह कर अभिवादन किया. बाबूजी बहुत खुश हुए और उसे 2 पैसे की बजाय 5 पैसे दिए. लेकिन रानी ने 5 पैसे लेने से इनकार कर दिया और सिर्फ 2 पैसे देने का आग्रह किया, जो बाबूजी ने उसे तुरंत दे भी दिया और उसे चाय भी पिलाई. इस घटना के बाद तो रानी और हमारे परिवार के बिच घनिष्ठता बढ़ती चली गयी. धीरे-धीरे रानी के बारे में हमारी जानकारियां बढ़ती गईं. सब कुछ जानकर बाबूजी उससे बहुत प्रभावित हुए.

रानी का जन्म आन्ध्र प्रदेश के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था. उसके पिताजी एक व्यवसायी थे. घर में सुख-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी. सबसे छोटा होने की वजह से अपने परिवार का दुलारा भी था. जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगा, उसकी भाव भंगिमाएं बदलने लगीं. उसके परिवार ने भी उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए उस पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई. पढ़ाई में भी वह अव्वल था और बारहवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर चुका था, कि अचानक एक दिन वही हुआ जिसका उन्हें डर था. उस इलाके में ही किन्नरों का मुखिया कुछ किन्नरों को लेकर उसके घर आ धमका. रानी का धर्मभीरु परिवार उस किन्नर का ज्यादा प्रतिरोध न कर सका और अपने सीने पर पत्थर रखकर उसे उस किन्नर के साथ रवाना कर दिया. रानी के पिताजी ने उसे बहुत सारे कपड़े और पैसे भी दिए थे. उसके मुखिया ने वो सारे पैसे हमारे लिए शगुन है कहकर ले लिए. रानी अपने घर से दूर एक नए परिवेश में मुखिया के स्नेह और प्यार के साथ रमने लगी थी. कुछ ही दिनों में वह मुखिया की विशेष सहयोगी बन गयी. नाचना-गाना और मौके के अनुसार अच्छे संवाद के कारण वह अपने क्षेत्र में काफी मशहूर हो गयी थी.

समय बीतने के साथ इन किन्नरों का कुनबा भी काफी बड़ा हो चुका था और जीवनयापन थोड़ा मुश्किल हो रहा था. अपने एक परिचित किन्नर के साथ मुखिया ने उसे मुंबई जाने की इजाजत दे दी. मुंबई के नजदीक नालासोपारा ही अब उसकी कर्मभूमि थी. अपने हंसमुख स्वभाव, मिलनसार व्यवहार और समझदारी के कारण रानी बहुत जल्दी लोगों से घुल-मिल गयी. उसका एक विशेष अंदाज में अभिवादन में “जय राम जी की “कहना भी लोगों को भा गया. नतीजतन किन्नरों को देखकर कन्नी काटने वाले भी उन्हें शुभ प्रसंगों पर स्वयं ही बुलाने लगे.

किन्नरों की अश्लील हरकतों का विरोध कर, उन्हें सही राह दिखाने वाले बाबूजी का सम्मान भी बढ़ गया. अब बहुत समय बीत चुका है. अब न हमारे बाबूजी रहे न ही रानी, लेकिन शायद रानी की दी हुई सीख की वजह से ही आज भी रानी के शागिर्द, जिनमें शबनम नाम की किन्नर और अन्य उसके सहयोगी लोगों से उसी अंदाज में ख़ैरात मांगते हैं और सम्मान पाते हैं. आज भी इन किन्नरों का हमारे यहां आना-जाना लगा ही रहता है. वे ढेर सारी दुआएं भी दे जाते हैं. समाज में अगर इन्हें समझने की काबिलियत हो, तो हमारा विश्वास है, कि ये किन्नर सभी कसौटी पर खरे उतरेंगे. जरूरत है बस इन्हें मुख्यधारा में कुछ मौका मिलने की.

— राजकुमार

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

6 thoughts on “संस्मरण : काबिलियत की कसौटी पर किन्नर

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, आपके पिताजी का, धैर्य, स्वभाव और समझदारी सराहनीय हैं. उनके धैर्य के कारण ही रानी को बात समझ में आई और उसने अभिवादन का तरीका बदल लिया. आपका यह लेखन और निखरे. एक नायाब और पहली रचना के लिए आपको कोटिशः बधाइयां.

    • राजकुमार कंडू

      श्रद्धेय बहनजी ! आपने सही कहा है । गलत राह पर चलनेवालों को यह अहसास दिलाना की वो गलत है अपने आप में एक सराहनीय कदम होता है । हमारे बाबूजी ने यही किया और उनकी कही बात को महसूस कर अपने व्यवहार में परिवर्तन लानेवाली रानी एक मिसाल बन गयी अन्य किन्नरों के लिए । इसमें हम समाज के सकारात्मक पहलू को भी महसूस कर सकते हैं जिसने एक किन्नर के बदले हुए स्वरुप का स्वागत किया । आपके मार्गदर्शन एवं सार्थक कमेन्ट के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।

      • लीला तिवानी

        प्रिय राजकुमार भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. समाज के सकारात्मक पहलू को भी महसूस कर सकते हैं जिसने एक किन्नर के बदले हुए स्वरुप का स्वागत किया. यही तो हमारे लेखन की सार्थकता सिद्ध करती है. इसके लिए आप और आपके पिताजी बधाई के पात्र हैं.

    • राजकुमार कंडू

      श्रद्धेय बहनजी ! आपने सही कहा है । गलत राह पर चलनेवालों को यह अहसास दिलाना की वो गलत है अपने आप में एक सराहनीय कदम होता है । हमारे बाबूजी ने यही किया और उनकी कही बात को महसूस कर अपने व्यवहार में परिवर्तन लानेवाली रानी एक मिसाल बन गयी अन्य किन्नरों के लिए । इसमें हम समाज के सकारात्मक पहलू को भी महसूस कर सकते हैं जिसने एक किन्नर के बदले हुए स्वरुप का स्वागत किया । आपके मार्गदर्शन एवं सार्थक कमेन्ट के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, आज सुबह उठते ही जय विजय पत्रिका पर आपका संस्मरण ”काबिलियत की कसौटी पर किन्नर” देखा, आपको लेखक के रूप में स्थापित होते देखकर मन प्रसन्न हो गया. अपना ब्लॉग पर धूम मचाने के बाद अब यह संस्मरण वहां भी धूम मचाएगा, ऐसी हमारी आशा भी है और शुभकामना भी. आपका यह लेखन और निखरे. एक नायाब और पहली रचना के लिए आपको कोटिशः बधाइयां.

    • राजकुमार कंडू

      श्रद्धेय बहनजी ! यह सब आपकी ही कोशिशों का नतीजा है । इसके लिए तो बधाई की पात्र आप स्वयं हैं फिर भी आपकी शुभकामनायें सर माथे पर । आपको ह्रदय से धन्यवाद !

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