कविता

कविता : भीगा सावन

बहुत भीगा सावन है रे
दिल को सुखा रख आँखों को भीगा गया
पल – पल जुदाई में तड़पती को
और मछली सा तडपा गया
अब सावन है तो हर अक्षर भीगेगा
इस गीले कागज़ को फिर कैसे निचोड़ेगा
यादों की छत पर तन्हाई जमकर बरसेगी
आँचल भिगोकर दामन सुखा रखेंगी
पुरवाई जब तेरा बदन छुकर आयेगी
मेरी साँसों को तेरी खुशबु से महकायेगी
पैरों में प्रीत की पायल बन्ध जायेगी
सावन के गीत जब कोई सखी गायेगी
मेहँदी से नाम तेरा जब सखी बनायेगी
प्रेम की धरा प्रीत रंग से रंग जायेगी
विरह की ये रातें आँखों ही में कट जायेंगी
भीगी धरती को और भिगाकर जायेगी

परवीन चौधरी

परवीन चौधरी

धर्मपत्नी श्री रामनिवास चौधरी। दो बच्चों की माँ और गृहणी हूँ। पिता जी का नाम- श्री ओमप्रकाश मल्हान और माता जी का नाम- स्वर्गीय श्रीमती कृष्णा मल्हान है। मैं मूल रूप से प्रान्त हरियाणा के हिसार जिले से हूँ और विवाह उपरान्त अपने पति के साथ पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर में रह रही हूँ। मैं अभी लेखन विधाओं को सीख रही हूँ। मुझे लेखन की ज्यादा विधाओं का ज्ञान नही है। बस अपने दिल के अहसासों को शब्दों में लिख कर जस का तस कागज़ पर उतार देती हूँ। अभी तक मेरे चार साँझा काव्य संग्रह - शब्दों के रंग, महकते लफ़्ज, कलम के कदम और सत्यम प्रभात प्रकाशित हो चुके हैं और समाचार पत्र में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।