पद्य साहित्यमुक्तक/दोहा

कुछ ‘मुक्तक’ आँखों पर

 

अँखियों में अँखियाँ डूब गईं,

अँखियों में बातें खूब हुईं.

जो कह न सके थे अब तक वो,

दिल की ही बातें खूब हुईं.

*

हमने न कभी कुछ चाहा था,

दुख हो, कब हमने चाहा था,

सुख में हम रंजिश होते थे,

दुख में तो ज्यादा चाहा था.

*

ऑंखें दर्पण सी होती हैं,

अन्दर बाहर सी होती हैं.

जब आँख मिली है तब से ही,

बातें अमृत सी होती हैं.

*

आँखों में सपने होते हैं,

अपने से सपने होते हैं,

आँखों में डूब जरा देखो,

कितने गम अपने होते हैं?

*

जब रिश्ते रिसते थे हरदम,

आँखों से कटते थे हरदम,

आँखों में कष्ट हुए थे जब,

आँसू बन रिसते थे हरदम.

*

लीला प्रभु की भी न्यारी है,

आँखों की छवि भी प्यारी है,

बढ़ता जाता है प्रेम तभी,

आँखें फेरन  की बारी है.