गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : पुरानी उस सुराही के बचे टुकड़े कहाँ रक्खूँ

फिसलकर नींद से टूटे हुए सपने कहाँ रक्खूँ
ज़फ़ा की धूप में सूखे हुए गमले कहाँ रक्खूँ

मुक़द्दस बूँद से जिसकी इबादत में वजू करती
पुरानी उस सुराही के बचे टुकड़े कहाँ रक्खूँ

परिंदे उड़ गए अपनी अलग दुनिया बसाने को
बनी मैं ठूँठ अब उस नीड के तिनके कहाँ रक्खूँ

भरा है तल्खियों से दिल कोई कोना नही ख़ाली
तेरी यादों के वो बिखरे हुए लम्हे कहाँ रक्खूँ

तुझे चेह्रा दिखाने पर तेरे पत्थर ने जो तोड़ा
सिसकते आईने के वो बता टुकड़े कहाँ रक्खूँ

हमारे वस्ल की रंगी फिज़ा इतना बता जाना
ख़जाँ की मार से पीले हुए पत्ते कहाँ रक्खूँ

तेरे लिक्खे हुए वो हर्फ़ मेरा मुँह चिढाते हैं
खतों के तेरे वो जलते हुए सफ्हे कहाँ रक्खूँ

राजेश कुमारी ‘राज’

राजेश कुमारी

राजेश कुमारी जन्मतिथि १० जून १९५६ जन्म स्थान मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश शिक्षा --------स्नातक (अंग्रेजी साहित्य ,संस्कृत ,राजनीति शास्त्र) स्नाकोत्तर (संस्कृत ) मेरठ विश्वविद्यालय से हुई है | कार्य अनुभव ----कुछ वर्ष -शिक्षण अनुभव(नेवल पब्लिक स्कूल विशाखापत्तनम ) वर्तमान में... ओपन बुक ओन लाइन साहित्यिक वेब साईट की कार्यकारिणी एवं सः संयोजक -कवितायेँ ,लेख ,कहानियां लिखना ,किताबें पढना , संगीत सुनना ,पेंटिंग ,चित्रकारी ,छायाचित्रकारी,ड्राइविंग आदि राजेश कुमारी के शौंक हैं ---बेडमिन्टन ,टेबिल टेनिस ,तैराकी आदि पसंदीदा खेल खाली वक़्त में खेलना पसंद करती हैं| सम्प्रति ----- प्रथम प्रकाशित पुस्तक ----(कविता संग्रह )ह्रदय के उद्दगार है दूसरी पुस्तक ---काव्य कलश तीसरी पुस्तक –ग़ज़ल संग्रह –साहिल पर सीपियाँ , 4-डाली गुलाब पहने हुए ग़ज़ल संग्रह , 5-गुल्लक लघुकथा संग्रह कुछ साझा काव्य संग्रहों जैसे ह्रदय तारों का स्पंदन , खामोश ख़ामोशी और हम , कवितालोक ,गीतिका लोक प्रेमाभिव्यक्ति , जीवन बुनते हुए , स्वर्ण आभा (राजस्थान )में इनकी कुछ कवितायेँ प्रकाशित हुई| यांत्रिकी देहरादून ,क्वावा शी सेज देहली ,हमारा घर,में तथा विभिन्न पत्रिकाओं में कवितायेँ प्रकाशित -- सम्मान –लखनऊ तस्लीम परिकल्पना सम्मान, ओपन बुक ऑनलाइन साहित्य रत्न हल्द्वानी सम्मान,कवितालोक रत्न हिसार सम्मान,जश्ने ग़ज़ल इलाहबाद सम्मान,साहित्य रत्न भोपाल सम्मान| राजेश कुमारी E1/1 CQA(I) ESTATE LADPUR DEHRADUN ,248008 E MAIL---rajeshvirendra@gmail.com

3 thoughts on “ग़ज़ल : पुरानी उस सुराही के बचे टुकड़े कहाँ रक्खूँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

    • राजेश कुमारी

      आपका तहे दिल से शुक्रिया आद० विजय कुमार जी |

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