कवितापद्य साहित्य

मतलब के रिश्ते

होते है जो मतलब के,
वे रिश्ते पिसते रहते है,
घावों से ज्यों रक्त निकलता,
वैसे रिसते रहते है।
जीवन कोरा, कोरी खुशियां,
क्षण भर जो ना टिक पाये,
ऐसे रिश्ते लाज के टुकड़े,
हाथ में लेकर फिरते है।
कुछ पल मन को भाने वाले,
सौंदर्य प्रसाधन के-से,
आंखों में ये धूल झोंकते,
जीवन भर ना टिकते हैं।
कभी मनचली हरकत करते,
कभी-कभी दुस्साहस भी,
मन की मर्जी करने वाले,
आंख चुराते दिखते हैं।
बीच राह में हाथ छोड़कर,
खुद तकते है मंजिल को,
ऐसे ही खुदगर्ज हमेशा,
कुछ सिक्कों में बिकते हैं।

सूर्यनारायण प्रजापति

जन्म- २ अगस्त, १९९३ पता- तिलक नगर, नावां शहर, जिला- नागौर(राजस्थान) शिक्षा- बी.ए., बीएसटीसी. स्वर्गीय पिता की लेखन कला से प्रेरित होकर स्वयं की भी लेखन में रुचि जागृत हुई. कविताएं, लघुकथाएं व संकलन में रुचि बाल्यकाल से ही है. पुस्तक भी विचारणीय है,परंतु उचित मार्गदर्शन का अभाव है..! रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'रश्मिरथी' नामक अमूल्य कृति से अति प्रभावित है..!