यात्रा वृत्तान्त

चलो कहीं सैर हो जाये –12

थोड़ी ही देर में हम लोग चौक में जा पहुंचे थे ।

यह चौक बस स्टैंड के समीप ही था जहां से हमने यात्रा शुरू की थी । चौक पर यात्रियों की खासी भीड़ थी । चौक में ही उत्तर की दिशा में दुकानों की कतार के बीच ही एक छोटा सा मंदिर था । उसीके बगल में दो नाश्ते की दुकानें थीं और उन दुकानों के सामने ही छह से ग्यारह बारह बरस की कई लड़कियाँ भी बैठी हुयी थी । लोग आते और दुकानदार को उन लड़कियों को खीलाने की बात कहकर पैसे देकर चले जाते ।

हम लोगों ने भी स्थिति का जायजा लिया और उन लड़कियों की भीड़ में से नौ लड़कियों को भोजन कराने के लिए चुनकर उन्हें अपने हाथों पूरी और चने का प्रसाद खीलाया । बाकि बची लड़कियों को भी कुछ न कुछ हम लोगों ने दिया और वहाँ से फिर वापस बाणगंगा रोड पर आ गए ।

कई टूर एंड ट्रावेल्स वालों से मीलते और समझते हुए हम लोग चौक से थोड़ी ही दुरी पर स्थित ‘ सरस्वती टूर एंड ट्रावेल्स ‘ में पहुंचे । यहाँ के मालीक श्री बिकुभाइ से हमने यहाँ के दर्शनीय स्थलों के बारे में जानना और घुमना चाहा ।

शाम के लगभग चार बज चुके थे और ज्यादा से ज्यादा दो घंटे का ही समय हमारे पास बचा था । बिकुभाई के मुताबिक हम लोग दो घंटे में कुछ भी नहीं घूम पाएंगे और टूर बेमजा हो जायेगा ।

उन्होंने बताया कटरा से लगभग एक सौ दस किलोमीटर दूर एक अत्यंत प्राचीन और पवित्र गुफा है जिसे शिवखोड़ी कहा जाता है हमें वहाँ अवश्य जाना चाहिए । उनके मुताबिक प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु उस पवित्र गुफा के दर्शन करने वहाँ जाते हैं । हमें उनकी सलाह बहुत ही अच्छी लगी । बिकुभाई का बातचीत और व्यवहार भी हम लोगों को बहुत ही बढ़िया लगा ।

सुबह शिवखोड़ी की यात्रा के लिए गाड़ी तय करके हम लोगों ने उन्हें कुछ पेशगी रकम देनी चाही जिसे उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया । वापस आकर पूरी रकम ड्राईवर को ही देना है यह बताकर उन्होंने अपना मोबाइल नंबर और कार्ड भी दिया जिससे उन्हें यह बताने में आसानी रहे कि हम लोग कहाँ रुके हैं ।

यूँ तो बाणगंगा इलाके में और चौक परिसर के नजदीक सभी स्तर के होटलों ‘ लॉज और गेस्ट हाउसेस की भरमार है हमें रात भर के लिए ठिकाना ढूंढने में कई होटलों की ख़ाक छाननी पड़ी ।

वहीँ चौक के नजदीक ही एक होटल में हमें चार चार बेड के दो कमरे खाली मील गए जिसे हमने तुरंत ही बुक करा लिया और अपने कमरे में आ गए ।

कमरा बहुत ही शानदार था । इतने शानदार कमरे का एक रात का किराया पांच सौ रूपया हमें बहुत ही कम लग रहा था । दोनों कमरे में अपना अपना सामान रखकर हम सभी मित्र एक कमरे में बैठकर कुछ गपशप करने लगे ।

बिकुभाई की भलमनसाहत से भी हम लोग प्रभावित थे सो थोड़ी देर उनकी चर्चा भी चली कि किस तरह से उन्होंने हमें सही सलाह दी थी और हम यहाँ आराम कर रहे थे वरना कोई भी दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति थोडा बहुत इधर उधर घुमा कर पैसे ऐंठ लेता ।

बिकुभाई को फोन करके हमने होटल का नाम बता दिया था । बिकुभाई ने सुबह सात बजे तैयार रहने का निर्देश देकर बताया कि गाडी सुबह सात बजे से पहले ही होटल पर पहुँच जाएगी ।
थकान अब महसूस होने लगी थी सो हम लोग थोड़ी देर पूरा आराम करना चाहते थे । अपने अपने बेड पर लेट गए । लेटते ही नींद आ गयी थी ।

दरवाजे पर दस्तक होने से नींद खुली । उठकर दरवाजा खोलने पर बाहर होटल का कर्मचारी खड़ा नजर आया । खाने के बारे में पूछने आया था । मोबाइल में समय देखा । रात के दस बजने वाले थे । कर्मचारी को खाने के लिये मना कर हमने बाहर जाकर खाने की योजना बनायी ।

थोड़ी ही देर में हम सभी मित्र चौक से और आगे एक पतली गली में स्थित एक ढाबे में खाने के लिए बैठे थे । पुरे सफ़र के दौरान हर जगह अपनी पसन्द से समझौता करने के बाद यहाँ हम सभी को अपनी पसंद का भोजन उपलब्ध हो पाया था ।

ज्यादा समय न गँवा कर हम लोग शीघ्र ही होटल के अपने अपने कमरे में आकर सो गए । सोने से पहले सुबह छ बजे का अलार्म लगाना नहीं भूले थे ।

हम सभी मीत्र घोड़े बेच कर गहरी नींद सोये हुए ही थे कि सुबह अपने कर्तव्य के प्रति पूरी निष्ठा दिखाते हुए अलार्म ने अपना काम करना शुरू कर दिया ।

अपनी नींद में खलल पड़ते देख उसे कोसते हुए हम लोग जाग तो गए लेकिन फिर सात बजे तक ही हमें तैयार होना है यह याद आते ही हमने अलार्म का शुक्रिया अदा किया और जल्दी जल्दी तैयार होने लगे ।

हमारे लिए मुसीबत यह थी कि दो कमरों में कुल दो शौचालय और दो ही बाथरूम थे हम आठ लोगों के बीच । बारी बारी से हमने शौचालय और स्नानघर का पूरा उपयोग करते हुए अपने आपको अगले सफ़र के लिए तैयार किया । सात बज गए थे और अभी तक गाड़ी नहीं आई थी । हम लोग तैयार होकर निचे होटल के रिसेप्शन पर पहुंचे ।

अभी हम लोग होटल का बील दे ही रहे थे कि एक इन्नोवा गाड़ी होटल के सामने आकर रुकी । ड्राईवर ने काउंटर पर आकर बिकुभाई का नाम लिया और हमारे हाँ कहने पर जेब से मोबाइल निकालकर बिकुभाइ से हमारी बातचीत करा दी । बिकुभाई ने ड्राईवर से परिचय कराते हुए रास्ते में देखने योग्य स्थान भी देखते जाने का आग्रह किया ।

शीघ्र ही हम लोग उस कार में सवार होकर शिव खोड़ी की तरफ रवाना हो गए ।

गाड़ी के रवाना होते ही हमने ड्राईवर से उसका नाम वगैरह पूछ कर उससे परिचय प्राप्त कर लिया । ड्राईवर का नाम अजीज था । वह यहीं कटरा के समीप ही किसी गाँव का रहनेवाला था । और बहुत दिनों से बिकुभाई के यहाँ बतौर ड्राईवर काम कर रहा था । बातचीत से वह बड़ा ही सज्जन आदमी लग रहा था । शिष्टाचार और अदब का बहुत ही ख्याल रख रहा था ।

बस स्टैंड से शहर के बाहर की तरफ जानेवाली सड़क पर हम आगे बढे । यह वही रास्ता था जहां से हम लोग जम्मू से आते हुए शहर में प्रवेश किये थे । आगे जाकर एक दोराहे से दायीं तरफ मुड़ते हम लोग रिआसी की तरफ रवाना हो गए । बाएं जानेवाला रास्ता जम्मू की तरफ जाता है यह संकेत वहां दोराहे पर लगा हुआ था ।

शहर से बाहर निकलते ही सड़क की दुर्दशा देख कर काफी निराशा हुयी । लेकिन सड़क को देखकर जहां निराशा हुयी थी वहीँ ऊँची ऊँची पहाड़ियों के बीच फैली गहरी खाईयों और घाटियों में सिमटे कुदरत के अनुपम सौन्दर्य का अवलोकन कर हम लोग खुद को धन्य समझ रहे थे । जम्मू से कटरा के रस्ते में हम लोग ऐसे दृश्य देख चुके थे लेकिन यहाँ का नजारा उससे कहीं बेहतर था ।

लगभग आधे घंटे के सफ़र के बाद अब सड़क कुछ बेहतर लग रही थी । सामने से इक्का दुक्का गाड़ियाँ भी आती दृष्टिगोचर हो रही थी ।

तभी ड्राईवर अजीज ने हमें बताया दो किलोमीटर बाद ही एक खुबसूरत बगीचा है जो जम्मू कश्मीर पर्यटन विभाग द्वारा विकसित किया गया है । यहाँ भी बहुत सैलानी समय बीताने आते हैं । इस बाग़ की खासियत के बारे में पूछने पर अजीज ने कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दिया । बाग बगीचे हम लोग देखना तो चाहते थे लेकिन हमारी पहली प्राथमिकता शिवखोडी की गुफाएं थी । लिहाजा हमने अजीज को वहाँ रुकने से मन कर दिया और आगे बढ़ते रहे ।

शीघ्र ही हम उस बाग़ के सामने से होकर गुजरे तो हमें लगा शायद हम लोगों ने वहां न रुक कर अच्छा ही किया था । कुछ दूर और आगे जाने पर अजीज ने सड़क के एक किनारे गाड़ी खड़ी कर दी थी । पूछने पर उसने बताया यहाँ नवदुर्गा का मंदिर है आप लोग दर्शन करके आ जाइये तब तक मैं सामने की दुकान पर चाय पी लेता हूँ ।

साथ ही उसने यह भी बताया जो भाई नहाना चाहते हों वह यहाँ नहा भी सकते है । नहाने का बहुत ही अच्छा साधन यहा पर है ।

अपने जुते चप्पल गाड़ी में ही छोड़ कर हम लोग सामने ही दिख रहे छोटे से मंदिर की तरफ बढे । नजदीक जाकर पता चला कि मुख्य मंदिर तो नीचे है । नीचे की तरफ जाती सीढियों पर हम लोग आगे बढे ।सीढियाँ काफी चौड़ी और खड़ी थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।