गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरे  गर्दिशों   का  आलम , तुझे   पूछना  न   आया ।

तेरी   बदसलूकियों   पे  , मुझे   रूठना  न   आया।।

ये वफ़ा की थी तिज़ारत , मैं समझ सका न तुझको ।
है सितम   का।  इम्तहाँ  ये , मुझे  टूटना  न आया ।।

हुए हम भी बे  खबर जब, वो  नई  नई थी   बंदिश।
वो ग़ज़ल  की  तर्जुमा थी , हमे  झूमना  न  आया ।।

था सराफ़तों   का   मंजर ,वो  झुकी  हुई  निगाहें ।
बड़ी तेज आंधियाँ थीं , कभी   लूटना  न  आया ।।

ऐ बहार मत गुमां कर , तू खुदा   की   रहमतों  पर ।
मैं शजर हूँ उस खिजाँ का, जिसे सूखना न आया ।।

ये है मनचलों की बस्ती, न उठा के चल तू चिलमन।
बे अदब   हुआ  ज़माना , तुझे   घूमना  न  आया ।।

न सुना तू  वो  कहानी ,जो थी  मैकदों  पे   गुजरी ।
वो  शराब  थी नज़र  की , जिसे  घूटना  न आया ।।

है गिरफ्त  में  नशेमन , हैं जमानतें  भी   ख़ारिज ।
ये तो  इश्क  की सजा  है कभी   छूटना  न आया ।।

रहे    देखते  किनारे , वो  नदी  की   तिश्नगी  थी ।
कुछ    गफलतों में  सागर ,उसे  ढूढ़ना  न आया ।।

जो तड़प तड़प के लिक्खा न वो मिट सकी इबारत ।
हैं  गमों  के  हर्फ़  जिन्दा  तुझे   डूबना  न   आया ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com