राजनीति

नोटबंदी की असली परीक्षा व परिणाम 2017 में

विगत 8 नवंबर 2016 को पीएम मोदी ने अचानक से देश को संबोधित करते हुए 500 व हजार के नोट बंद कर देने और कालेधन, आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐतिहासिक जंग का ऐलान किया था। पीएम मोदी ने इस महाअभियान में जनता से 50 दिन का सहयोग मांगा था, जो अब पूरा हो गया है। पीएम मोदी ने इसे अपनी जनसभाओं में भारतीय राजनीति के इतिहास का सबसे बड़ा ऐतिहासिक फैसला बताया है। पीएम मोदी का कहना है कि यह भी एक प्रकार से कालेधन और कालेमन वालों का सफाई अभियान ही है। अब यह जंग तब तक जारी रहेगी जब तक वे जीत नहीं जाते।

पीएम मोदी के फैसले के बाद देशभर में हर जगह हर व्यक्ति के पास कवल नोटबंदी ही सबसे बड़ा चर्चा का विषय बना रहा। भारत में नोटबंदी के ऐलान के बाद जहां देश का जनमानस पूरी तरह से पीएम मोदी के समर्थन में खड़ा रहा, वहीं विपक्ष भी पूरी ताकत के साथ सरकार के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। नोटबंदी का पहला सबसे बड़ा असर संसद के शीतकालीन सत्र पर भी दिखायी पड़ा। वह सत्र भी विपक्ष के हंगामे के चलते पूरी तरह से बर्बाद हो गया। भारत के विरोधी दल जहां पीएम मोदी के खिलाफ आक्रामक हो गये, वहीं दूसरी ओर विदेशी मीडिया में सरकार के उक्त फैसले की सराहना की गयी। नोटबंदी व भ्रष्टाचार को लेकर सरकार व विपक्ष के बीच काफी बेलगाम तकरार हो चुकी है।

पीएम मोदी अपने फैसले को गरीब हितों के लिए लिया गया सबसे बड़ा फैसला बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विपक्ष का कहना है कि इस फैसले के बाद गरीबों की बलि दी जा रही है। विपक्ष का कहना है कि नोटबंदी भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा साढ़े आठ लाख करोड़ का घोटाला है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि नोटबंदी के बाद भाजपा के लोगों ने जमीनें खरीदी हैं। इसी बीच सहारा और बिड़ला की डायरियों में पीएम मोदी सहित कई राजनीतिज्ञों पर पैसा खाने का आरोप भी लग रहा है। जबकि अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और देशभर के राजनीतिज्ञों व मीडिया की निगाहें 11 जनवरी को इस मामले पर होने वाली सुनवाई में लगी हुयी हैं। वहीं भाजपा भी विपक्ष पर लगातार हमलावर है। वह कांग्रेस को देश की भ्रष्टाचार में लिप्त सबसे बड़ी पार्टी बता रही है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि नोटबंदी के खिलाफ वही दल हंगामा कर रहे हैं जिनके पास कालाधान मौजूद है। यह बात बिलकुल सही है कि आगामी 2017 के प्रारंभ में भी कालेधन का मुद्दा देश की राजनीति में हावी रहेगा। वर्ष 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में सभी भाजपा विरोधी दल नोटबंदी व गरीबों को हुई परेशानी को ही सबसे बड़ा मुद्दा बनाने जा रहे हैं।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जनवरी की शुरूआत में ही अपने बंगाल की दयनीय हालातों को छोड़कर पूरे देश में ‘मोदी भगाओ देश बचाओ’ आंदोलन शुरू करने जा रही हैं। हालांकि अभी तक विरोधी दल कोई बडी साजिश रचने में कामयाब नहीं हो पाये हैं। यह बात अलग है कि नोटबंदी के बाद सरकार को फ्लाप करने के लिये कई तरह की अफवाहेें फैलायी गयीं, जो अनवरत जारी हैं। राजनैतिक दलों ने इसे अल्पसंख्यक विरोधी करार देते हुए सांप्रदायिक रंग देने का भी प्रयास किया। संसद के शीतकालीन सत्र में तो विपक्ष के बीच कुछ एकता तो दिखलायी पड़ी लेकिन अब विपक्षी एकता का भी गुब्बारा भी उस समय फूट गया जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और ममता बनर्जी की प्रेसवार्ता में कोई अन्य दल नहीं शामिल हुआ। एक प्रकार से अभी यही संकेत जा रहा है कि नोटबंदी पर विपक्ष की राजनीति को जनता ने कुछ हद तक नकार दिया है, लेकिन असली पता तो जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहा है वहां पर पता चलेगा।

कहा जा रहा है कि इन 50 दिनों में अपने ही पैसे निकालने के लिए आम आदमी परेशान रहा और उसने हर तकलीफ को सहा। इसलिए आज देश के आम आदमी के धैर्य की तारीफ की जानी चाहिये। लेकिन राजनैतिक दलों ने इसी धैर्य पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकनी प्रारम्भ कर दी। अब जनता के मन में यह भी प्रश्न उठता है कि आखिर 50 दिनों में देश के अंदर कौन से बड़े बदलाव आ गये हैं? कालेधन के खिलाफ यह स्ट्राइक कितनी सफल हुई है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा, लेकिन इसके बाद जब छापेमारी शुरू की गयी तो शहर-शहर, गली-गली कालेधन और कालेमन वाले सूरमाओं की पोल अवश्य खुलने लग गयी। हजारों करोड़ की तादाद में नोटों को गंगा जी में बहाया गया, किसी ने जलाया, नोटों को नहरों, नालों और खेतों में बहाया गया। कालेधन वालों के खिलाफ छापामार कार्यवाही तो अभी भी जारी है। कहा जा रहा है कि नोटबंदी के बाद बैंकों में अब तक लगभग 14 लाख करोड़ रुपये के पुराने नोट जमा हो चुके हैं। आयकर विभाग ने तीन हजार 590 करोड़ रूपये की अघोषित कमाई का पता लगाया।

देशभर की छापामारी में अरबों रूपये जब्त किये जा चुके हैैं। नोटबंदी के बाद 600 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। कश्मीर में पत्थरबाजी बंद हो चुकी है तथा स्कूलों को आग लगाने की घटनायें भी एकाएक बंद हो गयीं। अलगाववादी नेताओं पर शिकंजा कस गया, जिसके कारण वहां पर अचानक से बैंक लूटने की वारदातों मेें एकदम से बढ़ोत्तरी हो गयी। मानव तस्करी की घटनाओं में कमी दर्ज की गयी है। वहीं दूसरी ओर हवाला कारोबार पर गहरा आघात हुआ है। नोटबंदी का सबसे बड़ा असर कीमतों पर पड़ा है। नोटबंदी के बाद सब्जियों की कीमतों में 50 प्रतिशत तक की कमी आयी है और प्रापर्टी की कीमतों में भी 20 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट महसूस की गयी है। सभी प्रकार की दालों व खाने-पीने की वस्तुओं के दामों मे भी तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। सबसे अच्छी खबर यह है कि नोटबंदी के बाद सिगरेट के कारोबार व बिक्री में 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है।

नोटबंदी का कुछ बुरा असर भी पता चल रहा है। अर्थव्यवस्था में अचानक से कैश फ्लो कम हो गया है। नोटबंदी की सबसे बड़ी मार दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ी है। सरकार नोटबंदी के बाद कैशलेस मुहिम भी चला रही है लेकिन अभी पूरे देश को कैशलेस होने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण जनमानस के सामने समस्याओं का अंबार लगता जा रहा है। अभी 50 दिन बाद भी देश के दूर दराज और ग्रामीण क्षेत्रों मे जहां बैंकों की शाखायें बहुत कम हैं वहां नकदी की गम्भीर समस्या बनी हुयी है तथा अभी भी लगभग 40 प्रतिशत एटीएम में पैसा नहीं आया है।

नोटबंदी के बाद सबसे बड़ी बात यह हुयी है कि बैंकों के माध्यम से चल रहा कालेधन और कालेमन के खेल का तानाबाना भी बुरी तरह से टूट चुका है। बैंकों का भ्रष्टाचार सामने आ गया है। देश के बैंकिंग इतिहास में पहली बार 500 बैंकांें के कामकाज का स्टिंग आपरेशन किया गया जिस पर 2017 में कार्यवाही की जा सकती है। बैंकिग भ्रष्टाचार में कोटक महिंद्रा जैसे बैंकों पर बड़ी कार्यवाही 2017 में संभव है।
भारत को कैशलेस होने में अभी बहुत समस्यायें हैं। सबसे बड़ा खतरा साइबर अपराध व हैकिंग आदि का है। सबसे बड़ा नुकसान देश की जीडीपी को हो रहा है। सरकार का अनुमान जीडीपी की दर 7.6 प्रतिशत रहने का था लेकिन जो आंकड़े सामने आये हैं उससे जीडीपी केवल जुलाई से सितंबर महीने की दूसरी तिमाही में यह गिरकर 7.2 प्रतिशत रह गयी है।

माना जा रहा है कि अब सरकार अपने अगले चरण में बेनामी संपत्ति पर भी कड़ा प्रहार करने जा रही हैं। वैसे भी नोटबंदी इस साल का सबसे बडा फैसला हो गया है। सरकार के फैसले से जनजन में केवल यही बात कही और सुनी गयी चर्चा हुयी। वर्तमान समय में यह बात बिलकुल सही है कि लोगों ने टी. वी. चैनलों पर सास-बहू के धारावाहिकों पर चर्चा बंद कर दी। अभी नोटबंदी और कैशलेस भारत पर 2017 में भी काफी चर्चा होगी तथा 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगा कि देश की जनता पीएम मोदी के बदलाव के साथ थी या फिर विपक्षी दावे के साथ।

मृत्युंजय दीक्षित