कविता

कभी देखा है ?

कभी चिड़ियों को चहचहाते देखा है ?

कभी भवरों को गुनगुनाते देखा है ?

कभी बच्चों को खिलखिलाते देखा है ?

कभी  सूरज को उगते डूबते देखा है ?

देखना है तो आँख बंद करके देखो

अपने अंदर के खजाने को कभी देखा है ?

नदी को कलकल बहते हुए देखा है ?

घोड़े को हिनहिनाते हुए देखा है ?

जीवन कि दौड़ में, मैं ही  मैं करते हुए

आदमी को मरते हुए कभी देखा है ?

यह भी मिल जाए वो भी मिल जाए

आदमी को करते हुए कभी देखा है ?

बुद्ध नानक कबीर के चेहरे पर

फ़ैली हुई आभा को कभी देखा है ?

जाने हुए रास्तों पर तो सभी चलते है

अनजान रास्तों पर चल कर भी कभी देखा है ?

 

 

 

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।