कविता

मेहमान

घर आये थे मेहमान बनकर 
मेरे दिल मे बस गये अरमान बनकर 
पूजती रही मैं  उनको
एक  देवता समझकर 
हमे क्या पता कि दे देगें धोखा
ये अजनबी बनकर 
वही हुआ जिसका डर था
नही जिसको कुछ मालूम 
सभी को यह ज्ञात हुआ 
नही कुछ रहा अब 
मेरे और उनके बीच
यह रिश्ता भी शर्मसार हुआ 
क्या अपनाएगा किसी को कोई
जो किसी के जिंदगी मे आकर 
उसकी जिंदगी  तबाह कर दे
क्यो आते है लोग अक्सर इस तरह
जैसे जिवन मे बसंत आ गया
और चले जाते है एका एक
जीवन को पतझड़ बनाकर 
वही हुआ जो अक्सर होते आया हैं 
एक दिन वही मेहमान
पल भर खुशी देकर 
चला गया  फरिश्ते बनकर ।

निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४