कविता

कविता : नाव छूट ही जाते हैं

नाव छूट ही जाते हैं मन के मन के लिए
डूबता तैरता रहता हूं तुम्हारी नदियों में दिन भर के लिए
अडचनें भी जितनी मेरी राहों में है
सब जाले तुम्हारे नामों पर हैं
बह के तू जाए जहां में जहां भी कहीं
पर प्रतिबिम्ब चाँद तुम्हारी आंखों में है
चाहत मेरी है कि तू भी चाहे मुझे
दे उडा़नो को मेरी कुछ पाखे मुझे
नाव छूट ही जाते हैं मन के मन के लिए
डूबता तैरता रहता हूं तुम्हारी नदियों में दिन भर के लिए

वेदांत विप्लव

वेदान्त विप्लव इलाहाबाद उत्तर प्रदेश संपर्क सूत्र 9795430026