मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक

(1)
किसी बेदर्द से जज्बात का इजहार मत करना,
भले ही दाब कर भेंटे कभी व्यवहार मत करना,
बड़ा आसान सा है आजकल दिल से भुला देना–
कभी भी हुस्न पर नीरव किसी से प्यार मत करना ।
( 2)
तुम्हारा नाम सुनते ही हमारी आंख भर आई,
तुम्हारी बेवफाई चोट बनकर फिर उभर आई,
तुम इतने स्वार्थी हो तुम किसी के हो नहीं सकते–
तुम्हारे प्यार में काफी कमी मुझको नजर आई !
(3)
तुम्हारे बल्ब जलता है हमारे दीप जलता है,
तुम अत्याचार करते हो यहां सहयोग पलता है,
हमारे छप्परों में प्रेम की पुस्तक पढ़ी जाती—
तुम्हारे महल में नोटों का कारोबार चलता है !
(4)
जिसे तुम शूल कहते हो उसे हम फूल कहते हैं,
जिसे तुम सच समझते हो उसे हम भूल कहते हैं,
हमारी अरु तुम्हारी सोच में यह फर्क है नीरव–
जिसे तुम धन समझते हो उसे हम धूल कहते हैं।
(5)
कुर्सी से बेदखल बनाओ खद्दरधारी चोरों को,
जूतों की माला पहनावो बेशक इन लतखोरों को,
पुतले फूंको, जाम लगाओ, मुख्यालय पर धरने दो–
जैसे भी हो न्याय दिलाओ दलितों को कमजोरों को!
(6)
यही शिकवा है नेताजी यही तुमसे गिला मुझको,
तुम अपना पेट भरते हो महज आशा दिला मुझको,
तुम्हारी लिस्ट में हर बार मुझको धांधली लगती–
मैं जनता की अदालत हूं बताओ क्या मिला मुझको ?
डॉ. कृष्ण कुमार तिवारी नीरव