कविता

पृथ्वी छंद

पृथ्वी छंद, विधान-[ जगण सगण जगण सगण यगण+लघु गुरु] (121 112 12, 1 112 122 12) 17 वर्ण,यति 8,9 वर्णों पर,4 चरण’ दो-दो चरण समतुकांत…….

“पृथ्वी छंद”

छुपा कर चली सखी
नयन होठ लाली लिए।
पिया चमन घूमने
हृदय में दिवाली लिए।।

लजा कर गले मिली
सुखद भाव थाली लिए।
नहा कर ख़ुशी खिली
सजन की पीियाली लिए।।

महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ