कविता

“चम्पकमाला छंद”

छंद, विधान~ [भगण मगण सगण+गुरु] ( 211 222 112 2, 10वर्ण,,4 चरण, दो-दो चरण सम तुकांत

घाट बिना नौका कित जाए

हाट बिना सौदा कित छाए।

बात नही तो राहत कैसी

भाव नही तो चाहत कैसी।।

लोभ नचाये नावत माथा

मोह बुलाये लाभन साथा।

भार उठाए मानव धीरा

साधु बनाए साधक हीरा।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ