कविता

तुलसीदास ओ तुलसीदास 

तुलसीदास ओ तुलसीदास
तुम भी प्रेम पाश में
सारी हदें लांघ गये थे
रजनी के तम में
जली जो विरह अगन उर में
तुम लाश को नाव और
सर्प को रस्सी समझ बैठे थे
तुलसीदास ओ तुलसीदास
तुम भी प्रिये की आस में
भटके थे वन वन
किसी की तलाश में
सच सच बतलाना
रत्नावली के दमक से
तुम भी कुछ देर जले थे
तुलसीदास ओ तुलसीदास
पाकर अपनी मूर्खता पर
रत्ना के कटु प्रत्युत्तर को
तुमने तुरंत राम भक्ति के
बीज अपने हृदय में बोये थे
राम को पाकर वन की घास
बन गये थे तुम तुलसीदास
तुलसीदास ओ तुलसीदास

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com