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साहित्य साधना है कमाने का साधन नहीं


दिनांक 12.10.17 गुरुवार रात्रि 9 बजे स्थान डूंगरपुर दशहरा मैदान नगर परिषद द्वारा एक कवि सम्मेलन नियत था तो हुआ,तालिया बजनी थी बजी,भीड़ आनी थी आई,आयोजको को एक दिन साहित्य सन्ध्या करनी थी हुई पर इन सबके बीच कोई शर्मसार था,आहत था,डरा हुआ था तो कवि समाज और वह भी जब चोट और साजिशतन धोखा उसी कवि समाज के एक धड़े द्वारा दिया गया।
एक बड़ा नाम किसी आयोजन में जुड़ना किसी व्यक्ति विशेष के लिए बड़ी बात नही होती न ही वो इसे प्रचारित करता है अपने किसी भी लेखन में पर जब वही नाम किसी कारण वश उस आयोजन में नही होता तो वह उस विशेष व्यक्ति का विशेष होने का दम्भ जाग जाता है।क्या यही साहित्य की मर्यादा है?,क्या यही लेखन में होने वाले उद्गारों के उलट उसकी सोच है?
मेरे कवि मित्रो प्रश्न घातक है और आप सभी से पूछुंगा की क्या एक दक्षिणी राजस्थान के एक जिले के आयोजन को तब वह व्यक्ति विशेष इतना तूल देता या कार्यक्रम समाप्त होने के बाद वहां मिले आपार स्नेह को अपने शब्दों में वीडियो बना कर प्रेषित करता नही कदापि नही क्योकि यह तो उसके लिए आम बात है।
क्यो भाई जब आपका उसी मंच ने सम्मान किया,उसी भीड़ ने आपको सर आँखों पर उठा लिया तो वीडियो वायरल क्यो नही? क्योकि इससे आपको क्या प्रसिद्धि मिलती आपको राजनीति कहा करने मिलती?
मित्रो जवाब देना की क्या यह अपने को प्रचारित करने की कुत्सित विचारधारा नही थी और कहते है की हम साहित्य को राजनीति से बड़ा समझते है कितना थोथा है।
जब व्यक्ति यह कहता है कि पहली बार आ रहा हूँ जबकि व्यक्ति विशेष दो बार इस स्थान पर तब आ चुके थे जब यदि उनको उस स्थान पर पहुचने पर भी कविता नही पढ़ने दी होती तो शहर को भी पता नही पड़ता।
दोस्तो,हम स्वयं आज के सेलिब्रिटी कवियों का सम्मान करते है क्योंकि वे सेलिब्रिटी बाद में कवि पहले है वे अपने भाग्य और मेहनत दोनों की वजह से वहां है कल को मुझे या मेरे कवि समाज में से कोई भी वहां पहुचता है तो खुशी ही होगी और हर शख्स जो जिस क्षेत्र में है उसके शिखर तक पहुचना चाहता है।
मुख्यमंत्री के समक्ष और गृह मंत्री के सम्मुख कुछ दिनों पहले ही जो शख्स काव्य पाठ करके गया हो उन्हें क्या आपत्ति हो सकती है पर उस जिले और स्थान विशेष के राजनैतिक कार्यकर्ताओ की अपनी भावनाएं है कि जो व्यक्ति उनके यशस्वी प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री और पार्टी को कोसता है उसे वह माला नही पहना सकते और विरोध करेंगे तो एक कवि मित्र सम्मान की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए उनके पक्ष में यह फैसला हुआ क्योकि वे आते और कार्यकर्ता उनका अपमान करते तो यह असहनीय होता।
मित्रो इस आयोजन में भरोसा सर्वाधिक दयनीय स्थिति में था और वह भी एक कवि पर कवि का भरोसा जिसने पूरे दिल से अपने मित्र को आयोजन सोप दिया पर उसी कवि मित्र ने साजिश के बारे में मात्र एक घण्टे पूर्व सूचना दी यह कुकर्म उस व्यक्ति विशेष को सोने नही देगा यदि उसकी आत्मा है दिल है हा उसके दिमाग मे प्रसिद्धि औऱ मंच ही है तो नही फर्क पड़ेगा पर मैं अपने कवि समाज से अपिल करूँगा की आगे से सावधान रहें।
मित्रो *किसी शेर के पांव में यदि कांटा लग जाता है तो कुत्तो का साम्राज्य नही हो जाता* इसी तर्क से कहता हूं कि यदि देश मे किसी भी साहित्य के पुजारी की कलम में ताकत है तो वह एक बार मे ही विश्व पटल पर छा सकता है उसे किसी राजनैतिक पार्टी का नेता होने की जरूरत नही होगी।
मैं मेरे उन सभी कवि साथियो जो कि देश भर से है हमारे इस यज्ञ के समर्थन में दिल से अपना साथ निभाया है आत्मा से आभारी हूं और उन साथियो का जिन्होंने विषय को जाने बिना अपनी आस्था जता दी उनसे निवेदन है कि पुनः सोचे और उस लंका में न बैठे जिसकी चमक में शामिल होने के लिए आप उनके प्रशंसा की कहानियां गढ़ रहे है क्योकि किसी जानकार से पूछना की कितनो को मंच पर बैठाया और कितनो को आगे बढाया सब अपनी मेहनत से आगे बढ़े है और बढ़ते रहेंगे।
एक बार पुनः सभी का धन्यवाद इन चार पंक्तियों के साथ जो व्यक्ति विशेष को समर्पित है।

बिना पँखो के छू ले हम वही आकाश बन जाते।
जनता के दिल में रहते हो यही आभास बन जाते।
निराला,मैथिली,दुष्यंत,नीरज के थे वंशज तुम।
यूँ छोड़ कर राजनीति सही विश्वास बन जाते।

कवि विपिन वत्सल शर्मा
सागवाड़ा जिला डंगरपुर
राजस्थान
भारतीय साहित्य सेवा उत्थान समिति,नई दिल्ली