लघुकथा

लघुकथा : डिजिटल प्रेम

” विधि , प्रसून जी इसी बार पुस्तक मेले में दिल्ली आएंगे ! तुम आ रही हो ना मिलने ?”
रिसीवर पकडे जड़ सी हो गयी विधि ! यह संध्या को क्या प्रसून ने सब कुछ बतला दिया ?
” बोलो ना विधि ? तुम आ रही हो ना ? ” संध्या शायद फोन पर ही उसकी मनोस्थिति ताड़ चुकी थी !
खुद को संभालते हुए विधि ने अनमने भाव से धीमे से उत्तर दिया ,” नहीं ! अभी तो मुझे न्यू जर्सी जाना है ! पता नहीं कब वापिस आऊं ! अगले साल पक्का !”
विधि उधेड़बुन में थी कैसे पता करे कि संध्या और प्रसून जी के बीच उसे लेकर चल क्या रहा है ? प्रसून से विधि ने कई बार कुरेद कर पूछा भी था कि वो संध्या को कितना जानते हैं / उनके कैसे सम्बन्ध है वगैरह ! कई बार तो प्रसून टाल गए जवाब और दिया भी तो सिर्फ यह ,” मेरी फेसबुक फ्रेंड है बस !”
कुछ समय से संध्या प्रसून को लेकर उसे छेड़ने लगी थी ! संध्या ने ही उनसे मित्रता करवाई थी यह कह कर ,” बहुत बड़े लेखक हैं ! विदेश में रह कर अपने साहित्य के लिए कितना काम कर रहे हैं ! उन्हें कब कब, किन पुरुस्कारों से नवाज़ा गया बताया था ! विधि को प्रसून की कहानियां पढ़वाई !सब बातें याद कर विधि का मन विचलित सा था ! मयंक ( पति ) की याद आने लगी थी ! मयंक ने हमेशा उसे विषम परिस्थिति से उबारा है। … क्या हुआ जो थोड़ी कहासुनी हो गयी ! उसे तो समझदारी दिखानी चाहिए थी, यूं जरा सी बात पर घर छोड़ कर नहीं आना चाहिए था !
गेट खटखटाने की आवाज़ ने उसकी तन्द्रा तोड़ी ! जाकर देखा तो कोरियर था उसके नाम का !
“आकाशगंगा “, मेलबर्न से प्रकाशित एकमात्र हिंदी वार्षिक पत्रिका जिसके संपादक प्रसून शर्मा थे !
दोपहर का समय उसका खाली ही जाता था सो पत्रिका खोल पन्ने पलटने लगी और सबसे पहले प्रसून की कहानी निकाल ली ! जैसे जैसे पढ़ती जा रही थी उसके चेहरे पर अपमान,क्षुब्ध्ता के भाव आते जा रहे थे , कई बार चोर नज़रों से द्वार की ओर देखा ,कोई देख तो नहीं रहा ? वैसे कोई देखता भी तो सिवाय उसके समझता कौन कि उसके मन में प्राश्चित के,दुःख के कैसे बवंडर उठ रहे हैं ? प्रसून ने बस उसका नाम बदल कर “डिजिटल प्रेम कथा ” शीर्षक से अपने और विधि के बीच हुए वार्तालाप को थोड़े काल्पनिक अश्लील वाक्यों के साथ जरुरत से ज्यादा चटपटा बना कर परोसा था !
जड़ हुई विधि एक वर्ष पहले के अतीत में चली गयी जब मयंक से उसका अलगाव हुआ था और वो नई नई फेसबुक से जुडी थी तो एक साहित्यिक ग्रुप के जज प्रसून शर्मा थे ! उसकी रचनाओं को दाद देते देते कब उसके मित्र बने, कब मित्र से और ज्यादा नज़दीकी बने और उनमे घनिष्टता बढ़ती गयी फिर फोन नंबर के आदान-प्रदान के बाद व्हाट्सएप पर वार्तालाप और अंत में व्हाट्सएप कॉल ! लेकिन विधि ने कभी मर्यादा भंग नहीं की थी ! उन्होंने बताया तो था कि वो उसे जल्दी ही सरप्राइज़ देंगे लेकिन इतना ओछा सरप्राइज़ ? उफ़ ! औरत के अकेलेपन का फायदा उठाने में यह डिजिटल मित्र भी कितनी शातिरता से खेल खेल गए उसकी भावनाओं से ? एक बार मन में आया अभी कॉल करके फटकार लगाऊं, फिर लगा अबकी बार कहीं आवाज़ ही रिकॉर्ड ना कर लें ! जल्दी से फोन और फेसबुक दोनों से उन्हें ब्लॉक किया ! आज पति से अलगाव खटक रहा था और उनका संरक्षण याद आते ही चल पड़ी उनके पास !

— पूर्णिमा शर्मा 

पूर्णिमा शर्मा

नाम--पूर्णिमा शर्मा पिता का नाम--श्री राजीव लोचन शर्मा माता का नाम-- श्रीमती राजकुमारी शर्मा शिक्षा--एम ए (हिंदी ),एम एड जन्म--3 अक्टूबर 1952 पता- बी-150,जिगर कॉलोनी,मुरादाबाद (यू पी ) मेल आई डी-- Jun 12 कविता और कहानी लिखने का शौक बचपन से रहा ! कोलेज मैगजीन में प्रकाशित होने के अलावा एक साझा लघुकथा संग्रह अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है ,"मुट्ठी भर अक्षर " नाम से !