लघुकथा

पागल औरत !

गांव के नुक्कड़ पर बैठी औरत जिसके बाल खुले हुए और कपड़े अस्त-व्यस्त है। उसकी ये दुर्दशा देखकर लगता है कई दिनों से वह भूखी है। उसके चेहरे पर गम की लकीरें स्पष्ट नजर आ रही है। सब लोग उसे पागल औरत कहकर पुकार रहे है। दरअसल, उसका असली नाम मीरा है। जिसे शादी के बाद ही अत्याधुनिक दौर का कान्हा यानि किशन कुमार दहेज पूरा नहीं लेकर आने के कारण उसके पिता के घर छोड़ आया है। पति के वियोग व समाज के तिरस्कार और दुनियादारी के ताने सुन-सुनकर उसका यह हाल हो गया है। उसके पिता जीवन के अंतिम पड़ाव पर है। भाईयों की डोर घर की भाभियों के हाथ में है। मां बचपन में ही गुजर गई है। इन हालातों में उसे संबल देना वाला और समझने वाला घर व गांव में कोई नहीं है। मीरा से उसके पड़ोस में रहने वाले रामचरण काका बहुत चिढते है। जब भी मीरा के बचपन की सहेली रूकमणी (जो रामचरण की बेटी) ससुराल से घर आती है, तो वह मिलने चली जाती है। पुरापंथी सोच रखने वाले रामचरण काका को मीरा का अपने घर आना कतई अच्छा नहीं लगता।
एक दिन की बात है। गांव में तालाब के पास पडे खाली मैदान में मेला लगता है। गांव के सभी लोग मेला देखने जाते है। रामचरण काका का पूरा परिवार भी मेला देखने जाता है। जिसमें उनके चार बेटे व उनकी बीवियां, और उन बेटों के भी दस-बारह बेटे-बेटियां शामिल है। पागल औरत कही जाने वाली मीरा भी मेले में पहुंच जाती है। मेले में लोगों की अपार भीड उमड़ पडी है। अलबत्ता मेला अपने परवान पर पहुंच चुका है। रामचरण काका को उनके दोस्त लालाराम मिल जाते है। वे उनके साथ चले जाते है। उनके चार बेटे भी थोड़े समय के लिए परिवार से स्वतंत्र होकर मेले की रौनक को निहारने में मशगूल जाते है। उनकी बीवीयां फैंसी स्टोर में चुडियां व साडियां आदि खरीदने में व्यस्त हो जाती है। तभी दिनेश (रामचरण का सबसे बडा बेटा)  का बेटा चिंटू जो तीसरी कक्षा में पढता है। वह मौका पाते ही अपनी मां हाथ छुडाकर मेला देखने के लिए अकेले चल पडता है।
चिंटू अकेले मेला देखते देखते अंतिम छोर पर पहुंच जाता है। वहां कुछ बच्चे जो कि उसी के उम्र के है, वे तालाब में तैर रहे है और तरह-तरह की अठखेलियां कर रहे है। उन्हें तैरता देखकर चिंटू भी तालाब में कूद पडता है। पर उसे तो तैरना आता ही नहीं। तालाब में कूदते ही वह डूबने लगता है। उसे डूबते देख बाकि केे बच्चे डर के मारे भाग जाते है। तभी वहां से गुजर रही मीरा ने चिंटू को डूबते देख लिया। मीरा ने आव देखा न ताव देखा और सीधी ही वह पानी में कूद पडी। चिंटू को पकड़कर बाहर ले आयी। तब तक तालाब के किनारे बच्चे के डूबने की ये खबर सुनकर पूरा गांव एकत्रित हो गया। चिंटू को बाहर लाते ही मीरा ने पेट को दबाकर पानी बाहर निकाला। कुछ देर बाद चिंटू को होश आया। और वह ”मम्मी-मम्मी” कहकर रोने लगा। तुरंत मम्मी को देखकर जा लिपटा। मीरा की इस बहादुरी को देखकर रामचरण की आंखे गिली हो गई। अपने पोते को जीवनदान देकर उसने उन पर बहुत बडा उपकार किया। अब उनके आंख से गिरते आंसूओं ने साबित कर दिया कि मीरा पागल नहीं है। भले गांव व रामचरण के लिए मीरा पागल नहीं रही हो, लेकिन अभी भी वह पति के प्यार में तो पागल ही थी। जिसने उसे छोड़ दिया था।
– देवेंद्रराज सुथार
संपर्क – गांधी चौक,  आतमणावास,  बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान।  343025
मो – 8107177196

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com