मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

 

अंग रंग प्रत्यंग कलेवर, शरद ऋतु भरे ढंग फुलेवर।

सुनर वदन प्रिय पाँव महेवर, इत चितवत उत चली छरेहर।

अजब गज़ब नर नारि नगारी, शोभा वरनी न जाय सुखारी-

चुनर धानी पहिने प्रिया सेवर, तापर कनक कलश भरि जेवर॥-1

अवयव खिले महल रनिवाशा, गाए झूमर पहिने आशा।

जिह्वा परखे स्वाद बतासा,  ढोलक बाजे झूमे तासा।

यदा कदा सुंदर पहुनाई, कभी कभी बजती शहनाई-

किधर गई तूँ मन अभिलाषा, ढूंढन चले नगर विश्वासा॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ