गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

छंद – विधाता (मापनी युक्त ), मापनी- 1222 1222 1222 1222

उषा की लाल लाली रे बता किरनें कहाँ छायी

दिशाओं में अंधेरा ले खता कहने कहाँ आयी

परख ले खुद प्रभा है तूँ तुझे किसकी जरूरत है

निगाहों से लुटेरा बन, वफ़ा पहने कहाँ धायी॥

मुझे अब भी वही फरियाद है नाशाद करती जो

किसी का दिल दुखा लायी बता क्यों फिर यहाँ आयी॥

मचाकर रख दिया पल में खल बली कैसी

चला करके मर्म बरछी दवा रखने भुला भायी॥

भला हो उस रसूके जतन का तुझको सम्हाला तो

नए घाटों किनारों पर गिरा परदा नहा आयी॥

बहाकर ले गई दरिया उठी उन हर लहरों को

बता कैसे सहन पाई घिरी मजमा लगा आयी॥

बहक कर एक घर “गौतम” बनाया था किनारे पर

उसी में आ समा जाती मगर नक्शा उठा लायी॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ