कहानी

स्वच्छता में सम्पन्नता

सन्त सुधा सिन्धु पद विहार करते हुए एक नगर में आए। वहाँ के भक्तों की भावना को स्वीकारते हुए उन्होने जीवन में दुःख क्यों व इसका निवारण कैसे? विषय पर प्रवचन दिए। नगरवासियों ने गुरू के प्रवचनों को तन्मयता से श्रवण किया और जीवन को धन्य किया।
दुःख सबके जीवन में होते हैं और सब उसका निवारण भी चाहते हैं। इसी भावना को लिए कुछ लोग दोपहर में गुरू से मिले और उनसे निवेदन किया कि गुरूदेव हमारे जीवन में बहुत दुःख है हमारे कोई काम सफल नहीं होते, परिवार में कलह, घरों में बिमारियाँ आदि कोई न कोई समस्या हमेशा बनी रहती है। अतः हे गुरूदेव हमारे दुःखों का निवारण हो, हमारे जीवन में सुख शान्ति आए ऐसा आशीर्वाद हमें दीजिए।
गुरू ने उनकी बातों को सुना समझा मनन किया और बोले-‘‘आपकी समस्या है तो गम्भीर पर इसका समाधान हो सकता है और हाँ पहले आप लोगों को मेरे कुछ प्रष्नों का उत्तर देना होगा।’’ सब बोले-‘‘हाँ-हाँ हम आपके प्रष्नों का उत्तर भी देगें व बात भी मानेगें। बस आप तो हमारे दुखों का अन्त हो जाए ऐसा उपाय हमें बताए।’’ गुरू महाराज बोले-आप घर की साफ-सफाई रोजाना करते हो? सब बोले हाँ करते है। फिर सन्त ने पूछा कूड़ा-कचरा कहाँ डालते है? सब बोले-घर के बाहर रोड़ पर फैंक देते हैं।’’ यह उत्तर सुनकर गुरूदेव बोले-बस यह ही है आपकी समस्याओं व परेषानियों का कारण। आप लोग घर के बाहर, रोड़ पर या खुले में गन्दगी डाल देते हो। यह कूड़ा-करकट, गन्दगी व इसकी नकारात्मक ऊर्जा आपकी सारी समस्याओं की जड़ है। साथ ही कचरा व थैलियों में बन्द गन्दगी को पशु आदि खाते है उसके बाद उन्हें जो पीड़ा होती है वो पीड़ा ही तुम्हारे दुखों का कारण बनती है। यह सुनकर सब जन बोले है गुरूदेव आप बताएं हम क्या करें। सनत बोले-घर के कचरे व गन्दगी को रोड़ पर खुले में फैंकने की जगह निर्धारित स्थान पर डालें, इस हेतु कचरा पात्र का उपयोग करें, उसे ढक कर रखे आपकी समस्या का शीघ्र समाधान होगा। सब लोगों ने बात को सुना, समझा और वे वैसा ही करने लगे। घर व आस-पास मोहल्ले में सफाई रहने लगी, लोग सफाई के प्रति जागरूक हुए।
काकतालीय न्याय से कुछ दिनों/माह में उनकी समस्या का समाधान होने लगा। उनके घरों के झगड़े खत्म होने लगे, बिगड़े काम बनने लगे। उन लोगोें ने निर्णय लिया कि हमें गुरू के पास चलकर उनका आभार व्यक्त करना चाहिए। साथ ही आशीर्वाद भी लेना चाहिए। सब लोग गुरू महाराज से मिलने रवाना हुए जो किसी अन्य गांव में जा चुके थे ‘‘क्योंकि बहता पानी व रमता योगी’’ ही शोभा को प्राप्त करता है। वहाँ पहुँचकर सबने गुरू को नमन किया। सन्त उनको पहचान गए बोले-‘‘कहो कैसे आना हुआ।’’ सब बोले-‘‘गुरूदेव हमने आपके कहे अनुसार किया और हमारी समस्याओं का धीरे-धीरे समाधान हो रहा है। हम प्रसन्न है।’’ अतः आप से मार्गदर्षन व आशीर्वाद लेने आए है। इतने में एक व्यक्ति बीच में ही बोल उठा-हे गुरूदेव सही-सही बताएं कि स्वच्छता को जीवन में उतारने से हमारी समस्याओं का समाधान हुआ है या आपने किसी मंत्र-तंत्र से हमारी समस्याओं का समाधान किया है। क्योंकि कुछ समय पूर्व हमने यहाँ झाडू लगाओ अभियान चलाया था उससे तो कोई समस्या समाप्त नहीं हुई थी। गुरू बोले मैं जब आपके नगर में आया तो मैंने देखा कि यहाँ बहुत अधिक गन्दगी थी, सड़के नालियाँ भरी पड़ी थी सो मैंने तो उपदेष दिया था कि ऐसा करने से ये लोग सफाई का महत्व समझेंगे इनमें जागरूकता आएगी साथ ही सफाई का जीवन में महत्व इन्हे मालूम पडेगा। आपने इस बात को समझकर स्वच्छता को प्रमुखता दी यह उसी का नतीजा है साथ ही महापुरूष तब किसी बात को कहते या करते हैं तो वो व्यक्ति के जीवन में प्रभाव डालती है। यह साधक के त्याग, तपस्या व पावन भावना का चमत्कार होता है। अतः मैंने कोई मंत्र-तंत्र नहीं किया मैंने तो मात्र उपदेष दिया था तुमने उसे जीवन में उतारा इससे सकारात्मक ऊर्जा का तुम्हारे में प्रवेष हुआ और स्वतः ही सारी समस्याओं का समाधान धीरे-धीरे होने लगा।
अन्त में गुरूदेव ने उपदेश देते हुए कहा कि स्वच्छता कोई नाटक करने की वस्तु नहीं है कि आपने हाथों में झाडू उठा लिये, फोटो खिचा लिए और हो गया काम। यह जीवन में उतारने व जीवन का अहम हिस्सा बनाने की वस्तु है अतः स्वच्छता को जीवन में उतारों। किसी के भरोसे मत रहो। गन्दगी की है, कचरा किया है तो फिर उसे साफ करने का भी साहस रखो। भला करें आप और भरोसे रहें दूसरों के तो इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। सरकार अपने स्तर पर प्रयास करती है पर वह प्रयास हमारे सहयोग व समर्पण के बिना सफल नहीं हो सकता। अतः आप अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक हो गए तो हम व हमारा देष स्वच्छता व स्वास्थ्य के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ होगा।
सब ने सन्त की बात को जीवन में उतारने की भावना के साथ गुरू का आभार व्यक्त किया और रवाना हो गए।
भाईयों हमें भी सन्त के उपदेषों से प्रेरणा लेकर स्वच्छता को जीवन में उतारने की आवष्यकता को समझें अगर हम ऐसा करते है तो निष्चित रूप से हम स्वच्छ भी होगें और स्वस्थ भी। हम खुष भी होगें खुशहाल भी।
जय हिन्द-जय स्वच्छ भारत !

दिव्या कुमारी जैन

दिव्या जैन

छात्रा- द्वितीय वर्ष कला 298 सेक्टर नं. 4, गांधीनगर चित्तौड़गढ़ (राज.) - 312001 मो. 9413817232