हास्य व्यंग्य

मासुम प्रश्न का कठोर जवाब

आखिर उनके स्वर फिर फूट पड़े,विपक्ष में रहकर ही स्वर फूटते हैं और सत्ता में रहकर सुर बनते हैं।एक सर्वे की रिपोर्ट पर उन्होंने ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री दावोस में बतायें कि देश की एक फीसदी आबादी के पास तिहत्तर फीसदी सम्पत्ति क्यों है?निश्चित ही बताया जाना चाहिए कि एक फीसदी आबादी तीन चौथाई सम्पत्ति कैसे हड़प सकती है! जब वे सत्ता में थे तब उनसे पूछा ही नही गया,वरना जवाब तो वे भी दे देते।आज इनके मन में प्रश्न अवतरित हुआ है, इतने वर्षों में कहीं इस बात को सोचा ही नहीं गया।कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले तीन-चार वर्षों में ही यह तीन-चौथाई सम्पत्ति एक प्रतिशत आबादी ने दबोच ली हो और किसी को कानो-कान खबर तक नहीं होने दी हो और केवल प्रधानमंत्री ही इससे भिज्ञ हों!या फिर यह सब गुपचूप तरीके से हो रहा हो।
आजादी मिले तो सत्तर वर्ष से अधिक हो गए हैं लेकिन यह आज क्या हो गया कि तीन चौथाई सम्पत्ति एक फीसदी आबादी ने अपने कब्जे में कर ली।कहीं ऐसा तो नहीं कि यह एक फीसदी आबादी शत-प्रतिशत सम्पत्ति अपने कब्जे में करने की साजिश रच रही हो!अमीर और अधिक अमीर होता जा रहा है और गरीब और अधिक गरीब किन्तु हमने तो समाजवादी लोककल्याणकारी राज्य स्थापित करने का संकल्प लिया था।यह किस राह की ओर बढ़ गये हम!पहले यदि समाजवाद की राह पर हम बढ़ चले थे तब एकाएक क्या हुआ कि पूंजीपतियों ने अपना वजूद कायम कर लिया!सुना तो यही था कि समाजवादी राह पर चलते हुए सम्पत्ति का बंटवारा समान रूप से करने की कोशिश की गई और अब जब दुनिया पूरी तरह से घोर पूंजीवादी होती जा रही है तथा सरकारें घनघोर रूप से पूंजीवादी मानसिकता की शिकार हो गई हैं तब स्वाभाविक ही है कि एक फीसदी आबादी को ही पूरी छूट दे दी गई हो कि सारी सम्पत्ति हड़प लो।लगता है कि समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा वाले लोग भी इन एक फीसदी में ही आ मिले हों,तभी तो समतामूलक समाज की बयार न जाने कहाँ खो गई!
अब सवाल उठाया है कि तीन चौथाई सम्पत्ति एक फीसदी आबादी के पास ही क्यों रहे,आधे फीसदी के पास क्यों नहीं!सम्पत्ति के केन्द्रीयकरण के सवाल पर एक ही जवाब है जो मैं दे सकता हूँ।पहले तो यह समझ लें कि दुनिया भर में साम्यवादी फेल हो गये,समाजवादी फेल हो गये।वामपंथ स्वयं अपना पंथ खोज रहा है।ये लोग भले ही समाज में शोषक और शोषित की बात करते आये हों लेकिन क्या इस भेद को वे खत्म कर पाये हैं!नहीं न!अर्थात शोषित तब भी थे,आज भी हैं और कल भी रहेंगे।यह सभी तरह की व्यवस्थाओं में विद्यमान रहा है।अब तो पूंजीवादी समाज है,पूंजीवादी व्यवस्था है, पूंजीवादियों की तब भी विजय हुई थी और आज भी हुई है।निन्यानवे फीसदी शोषित और एक फीसदी शोषक वर्ग । यानी पूंजीवाद की ही विजय हुई है।प्रश्न करने वाले भी जानते हैं कि इस विजय में उनकी सहभागिता कितनी रही है?हाँ,यह बात अवश्य है कि शोषित वर्ग की आवाज उठाकर शोषक वर्ग की राह आसान करने का काम बदस्तुर जारी है और जारी रहेगा।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009