“मुक्तक”
लो आ गया अपने वतन तो, दिल दीवाना हो रहा है।
जब मिल गई धरती हमें तो, नैन लगाना हो रहा है।
जाकर मिला घर छोड़ अपना, होकर पराया रह गया था-
जमें आसुओं की धारा से, बाग खिलाना हो रहा है॥-1
मजबूर माँ के आँसुओं की, तस्वीर दिखा सकता नहीं
चाह विदेशी हरगिज न थी, रुपया उगा सकता नहीं
जब दुसवार थी दो रोटियाँ, भूख वक्त पर लगती गई
जरूरत दीवाना कर गई, सुअवसर गँवा सकता नहीं॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी