गीत/नवगीत

आया बसन्त

आया बसन्त आया बसन्त।
फूल खिल गये अनन्त।।
चहुँ और गन्ध बरषने लगी
मन की क्यारी महकने लगी,
पुष्प गन्ध हो अनन्त।
आया बसन्त आया – – – – –
मनुष्य मन हो हर्षित
मनुष्य तन हो गर्वित,
ऋतु आगमन में हो
ऋतु राज कन्त।
आया बसन्त आया – – – – –
डाल -डाल है गदराई हुई
पुष्प – फल से शर्माई हुई,
पक्षियों का डाल – डाल कलरव हो
नव चेतना प्रखर हो।
आया बसन्त आया – – – – – – – – – –
पवन बहे लिए सुगन्ध
भ्रमरा वलि गाये मन्द – मन्द,
पुष्प मन चंचल हो
कली मन गाये छन्द।
आया बसन्त आया – – – – – – – – – – –
हिम शिखर धवल हुए
मोर संग कोयल ध्वनि सवल हुई
धरा रज पीत हुई,
मानव मन हुए सन्त।
आया बसन्त आया – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
झूम – झूम बोर इठलाये
पक्षी मन नॉच – नॉच इतराये,
सोन बालक करते किलोल
मन बहलाये अन्त।
आया बसन्त आया – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
नेत्र मन पुलकित हो
भाव लिए मन चर्चित हो,
सागर लिए भाव गाये गीत चन्द।
आया बसन्त आया – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
बहकी – बहकी पवन गिरी से चले
उतर चाँदनी नभ से भू पर खिले,
काम देव ढूँढे रति को
मन भाये प्रसंग है।
आया बसन्त आया – – – – – – – – – – – – – – – – – – –

— संतोष पाठक

संतोष पाठक

निवासी : जारुआ कटरा, आगरा