कविता

तुम्ही तुम

तुम्ही तुम क्यो नजर आते हो
हर पल हर क्षण क्यो सताते हो
ख्वाबो मे तुम दिखते हो
हकिकत में भी सामने आ जाते हो
हर मुश्किल काम आसान बनाते हो
और आसान को भी मुश्किल कर देते हो
कभी बच्चो की तरह रोते हो तो
कभी बड़े बन समझाते हो
खुद रूठते हो खुद मान जाते हो
मुझे मनाने का अवसर ही कहां देते हो
कभी शिकायतें हजार करते हो
कभी तारीफो की पुल बॉध देते हो
शुरूआत तुम्ही करते हो
अंत भी जल्द कर देते हो
मुझे तो बीच मे ही अकेला छोड़ देते हो
कभी चॉद देखने की बात करते हो
कभी मुझमे ही चॉद देखते हो
क्या कहूँ तुझे मैं
तुम्हारी हर अदा निराली है
बस ज्यादा नखरे ना दिखाना
क्योकि अब हमारी बारी हैं।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

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