सामाजिक

लेख– एक दिन की सजगता काफ़ी नहीं,

कहते हैं, इस जीव-जगत में किसी का अस्तित्व ख़त्म करना है, तो उसके आवास औऱ भोजन को नष्ट कर दो। वह जाति और प्रजाति अपने-आप नष्ट हो जाएगी। वहीं स्थितियां गौरैया नामक चिड़िया के साथ बीते वर्षों में हुई। गांवों का बदलता परिवेश, शहरीकरण की बढ़ती मानवीय प्रवृत्ति, घरों के बनावट में तब्दीली, बदलती जीवन-शैली, खेती के तौर-तरीकों में बदलाव, बढ़ता प्रदूषण, मोबाइल टाॅवर से निकलने वाला रेडिएशन आज जीव-जंतुओं के जीवन के लिए काल की भूमिका अदा करने लगी है, जो चिंतनीय औऱ विचारणीय स्थिति पैदा कर रहा है। जब इस धरा पर एक जीवन चक्र निर्धारित है, औऱ किसी भी कारण से पारिस्थितिकीय तंत्र बिगड़ जाने से मानव जीवन का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ सकता है। ऐसे में मानव को अपनी इच्छाएं सीमित करनी होगी। अपने लिए नहीं तो अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए। इस धरा पर हर वस्तु सीमित है, सिवाय मानव की इच्छाओं औऱ आवश्यकताओं के तो उसको नियंत्रित तो करना ही होगा।

अगर इस धरा पर जीवन चक्र को बनाएं रखना है, तो विज्ञान में हम लोगों ने एक तथ्य इस धरा पर जीवन सुचारू रूप से गतिमान रहने के लिए पढ़ें होंगे। माध्यमिक शिक्षा के दौरान कि घास को बकरी खाती है, बकरी को मनुष्य और मनुष्य को शेर खाता है। तो इसका तात्पर्य यहीं है इस धरा पर हर वस्तु औऱ जीव-जंतु की अहमियत औऱ उपयोगिता है। फ़िर मानव विकास के लिए अंधानुकरण करके इस चराचर जगत में नहीं रह सकता। अब हम आज बात गौरैया नामक छोटी सी चिड़िया की कर रहें हैं, जिसका अस्तित्व मानवीय क्रियाकलापों की वज़ह से संकट में पड़ गया है। औऱ आज विश्व गौरैया दिवस का है। गौरैया के अस्तित्व पर ख़तरा मंडराने का कोई एकाध कारण नहीं बल्कि अनेक हैं। जिसमें कृषि में रसायनिक खादों का उपयोग, कच्चे मकानों की गांव में कमी आदि है। जिस कारण प्रातःकालीन समय में हम गौरैया की चहक सुनने से दूर हो रहें है। पारिस्थितिकी तंत्र में अगर जीव-जंतुओं की उपयोगिता देखी जाएं, तो इस धरा पर हर किसी का कुछ न कुछ महत्व है। झाड़ी औऱ जंगल ये चिड़ियों की ही देन है। ये परिन्दे ही जंगल लगाते है, और तमाम प्रजातियों के वृक्ष उगने के प्रति उत्तरदायी होते हैं। विज्ञान कहता है, कि जब कोई पक्षी वृक्षों के बीज को भोजन के रूप में ग्रहण करता है, तो वही बीज उक्त पक्षी की आहारनाल से पाचन प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात कहीं धरा पर गिरकर अंकुरित होकर पेड़ का रूप लेता है। साथ में परागण की प्रक्रिया भी इन्हीं पक्षियों के सहयोग से पूर्ण होती है। ऐसे में कहा जा सकता है, जिस जंगल औऱ झाड़ियों को नष्ट मानव समाज भौतिक सुविधाओं के लिए करता है, उसको संयमित करके नया जीवन देने का कार्य मानव समाज को ये जीव-जंतु ही करते हैं।

आज पेड़-पौधों की संख्या अगर कम हो रहीं। इसका मतलब इसके दो कारण है, एक मानव द्वारा पेड़ काटना और दूसरा पक्षियों की तादाद कम होते जाने के कारण नए पौधों का न उग पाना, क्योंकि आदमी तो पेड़ लगाता तो कम है, काटता ज्यादा। कीट-पंतगों की तादाद पर भी यही परिन्दे नियन्त्रण करते है, ऐसे में अगर कीट-पतंगों की तादाद को नियंत्रित करने का काम ये पक्षी करते हैं, तो हमें गौरैया जैसे पक्षियों का वजूद नष्ट कर सिर्फ़ उनकी प्रजाति इस धरा से विलुप्त नहीं कर रहें। बल्कि हम पढ़-लिखकर भी अपने आप से खेल रहें। आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। औऱ यह ह्रास ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। तभी तो 2010 से इस पक्षी को बचाने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया 20 मार्च। ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में गौरैया नामक उस चिड़िया को रेड लिस्ट में शामिल कर दिया है। जो ग्रामीण जीवन का बीते लगभग एक दशक पूर्व अहम हिस्सा थी। मतलब मानव जीवन कितना तीव्र गति से स्वार्थी हो चला है। यह इसी बात का उदघोषक है।

अब गांव में भोर के वक्त लोगों के घरों के आसपास चीं…चीं चहकने वाली इंसानी घर को ही बसेरा बनाने वाली और जिस खूबसूरत पक्षी को देखते हुए हम लोग बड़े हुए। वह गौरैया आज शहर क्या गांवों में बड़े विरले अवस्था में देखने को मिलती है। तो उसको बचाने के लिए हमें आगे आना होगा, औऱ कहते हैं कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। तो क्या आज वह मानवता इतनी कमजोर पड़ गई, कि एक छोटी सी चिड़िया का वजूद बचाने के लिए आगे नहीं आ सकती। जिसके सुरक्षित होने में मानव समाज का अस्तित्व भी कही न कही छिपा हुआ है। आज गौरैया के साथ अन्य पक्षियों के संरक्षण की ज़रूरत है। नहीं तो हम आने वाली पीढ़ी को सिर्फ़ मोबाइल-फ़ोन पर उनके कलरव की आवाज़ के साथ चित्र दिखा सकेंगे, औऱ उन्हें आभासी तौर पर कहेंगे देखो बच्चों यह गौरैया है। तो क्यों न हम आज कुछ ऐसा करें, कि अपने कल को आभासी दुनिया में जीने से बचा सकें। आज कुछ हिस्सों में तोता औऱ गौरैया जैसे पक्षी है, भी तो उसे पकड़कर बहेलिए बाज़ार में बेचते हैं, औऱ कानून मौन व्रत धारण किए रहता है। इस प्रवृत्ति को त्यागकर गौरैया जैसी चिड़ियों का वजूद बनाए रखने के लिए उन्हें अनुकूल वातावरण समाज प्रदान करे। उनके घोसलों को संरक्षण प्रदान करें। साथ ही साथ उनके लिए दाने- पानी की माक़ूल व्यवस्था करें। ग्रामीण परिवेश अपना अतीत फ़िर से अपनाएं। तभी इस दिन की सार्थकता समझ आएंगी। वरना एक दिन का दिखावा किसी अर्थ का नहीं।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896