गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

इतना मत खुद पे ताप सहो , तुम एक जलावन बन जाओ
इतने न विभीषण पालो तुम , की खुद ही रावण बन जाओ

है अलग अलग छत्रप जितने , सबकी धरती क्यो हड़प रहें
है राज दिया तुम राम बनो , मत आप युँ वामन बन जाओ

हे पतित पावनी गंगा माँ , कब तक यूँ पाप हरोगी तुम
इतना भी मैला मत धोना , तुम आप कृपण ही बन जाओ

जो भी आता है राहों में सबको गलबहियाँ मत डालो
न धूल सभी की साफ करो, तुम स्वयं न झाड़न बन जाओ

— मनोज “मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.