कविता

हॉ एक रहस्य है

हां एक रहस्य है
हमारा तुम्हारा प्यार
जिसका चेहरा
मेरे मानस पटल पर
हर पल छाये रहता है
अंदर का ही एक अंश
जो तुमसे अपरिचित है
वो भी प्रेम से लिप्त है
चाहता है वो सिर्फ तुम्हे
तुम्हारे ही ताक में रहता है
इस दुनियॉ से अंजान
लेकिन तुमसे वाकिफ है वो
तुम्हारे आने की खुशी
और जाने का गम
आज भी उसे है
क्योकि वो प्रेम को
जाना नही जीया है।

निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४