लघुकथा

वार्तालाप

आँगन में जलते दीये के तेल ने बाती से पूछा — ” हल्के लाल-पीले लौ लिये जल रही हो। देह में बड़ी जलन हो रही होगी ना….? बड़ा कष्ट हो रहा होगा….है ना….? ”
” नहीं मित्र , तू ने मुझे अपनी तरलता दी है। तुझ जैसे साथी हो तो जलने में भी मजा आता है। और हाँ , ‘जलना ‘ तो मनुष्य का काम है। हम तो प्रकाश देते हैं. अब अपना बताओ। ” बाती शांत हुई।
” आज मैं धन्य हो गया ” तेल ने अपनी बात रखी – ” दीये ने मुझे अपने हृदय में रखा है। उनकी सहृदयता से मैं मर्यादित दायरे में हूँ। तुझे मदद करने के लिए वह मुझे प्रेरित कर रहा है। मुझे कोई कष्ट नहीं है। ” तेल ने आगे कुछ और कहना उचित नहीं समझा।
” परोपकार में बहुत आनंद है साथियों ” दीये का कहना था – ” और तिमिर को मिटा पाना हम तीनों के संघर्ष का परिणाम है। यूँ कहें , रोशनी हमारी सादगी , सहिष्णुता एवं कदाचित् निःस्वार्थ सेवाभाव का संगम है। मुझे अपने तले के तमस की कोई परवाह नहीं है। मित्र , कर्तव्यनिष्ठा ही अधिकार निर्धारित करती है। मैं समझता हूँ कि निः स्वार्थ कर्मठता हरेक की जीवनशैली होनी चाहिए। ” अब दीये ने भी  अपनी वाणी को विराम दी। सुंदर-सुखद-शांत आभा पूरे वातावरण में फैलने लगी। पर आज दीये , बाती, व तेल का वार्तालाप सुन , सच मेरी मनुष्यता शरमा गयी।

टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला ” 

टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"

शिक्षक , शासकीय माध्यमिक शाला -- सुरडोंगर. जिला- बालोद (छ.ग.)491230 मोबाईल -- 9753269282.